सोमवार, 31 दिसंबर 2007

ऐसा हो नए साल में

पानी खूब आए
इतना भर जाए
पानी की टंकी
मीठे गाने गाए

पार्किंग को लेकर के
लड़ें न अब से लड़ाई
सर्दी में भी मेरे मित्रों
न ओढ़ें अबसे रजाई

ऐसा हो नए साल में

पानी खूब आए
इतना भर जाए
पानी की टंकी
मीठे गाने गाए

पार्किंग को लेकर के
लड़ें न अब से लड़ाई
सर्दी में भी मेरे मित्रों
न ओढ़ें अबसे रजाई

रविवार, 9 दिसंबर 2007

सरकारी बाबू

सबसे बेकाबू
हिंदुस्तान का सरकारी बाबू
हमने जो कुछ देखा
प्रस्तुत है सरकारी लेखा
फ़ाइल मेज़ के
एक कोने से
दूसरे कोने तक जाती है
सैंकड़ों रुपए
और सैंकड़ों दिन खाती हैं
कोने से कोने की
क्या दूरी है
लेकिन ये बाबू की मजबूरी है
फ़ाइल को
बाबू की कलम से
मिलना है
उसी के हाथ के नीचे से
निकलना है
फ़ाइल का
इस तरह से निकलना
शहर की सीमा पर लगे
चुंगी बैरियर
और उसके नीचे से निकलते
पब्लिक कैरियर
की याद दिलाता है
ट्रक क्या वैसे ही निकल जाता है
यह तो नियम है
दस्तूर है
इसमें बाबू का क्या कसूर है
आप कहेंगे
तभी ये केस होता है
जब ट्रक में अधिक
वेट होता है
तो भाई लोगों
फ़ाइल का वेट नहीं
पर पेट होता है
और
पेट के मुताबिक रेट होता है
ज़रा सोचिए
बाबू खुद का नहीं भरेगा
तो फ़ाइल को क्या भरेगा
आख़िर
क्या बुरा है
जो भी इस दुनिया में आता है
वही खाता है
गधा खाता है, घोड़ा खाता है
कोई ज़्यादा तो कोई
थोड़ा खाता है
बिना खाए तो आदमी
भी काम नहीं करता
फिर वो तो बाबू है
नहीं खाएगा
तो कहाँ जाएगा
उसको तो खाना ही पड़ेगा
वरना बॉस लड़ेगा
चपरासी से
बाबू बनाया था
अब बाबू से चपरासी बना देगा
फ्री फंड में डांट पिला देगा
अब आप ही बताएँ
कौन बेवकूफ़ है
जो डांट पिएगा
वो तो बाबू है
बोतल ही न पिएगा
खुद भी गटकेगा
बॉस भा गटकेंगे
दोनों मिलकर
इस देश को सटकेंगे

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2007

सोमवार, 3 दिसंबर 2007

chheentakashi

केला-व-नींबू की नोकझोक

केला उवाच

रूप सलोना है तू गेंद सा खिलौना है
फिर भी तुझे आदमी के हाथों कत्ल होना है
बीच से वो काटता है जीभ से भी चाटता है
इतना निचोड़ता है बूँद नहीं छोड़ता है
आदमी क्रूर है रहम नहीं खाता है
दर्दनाक अंत तेरा मुझे नहीं भाता है

नींबू उवाच
अपनी नहीं सोचता है कैसा तू जनाब है
मुझ से तो गत ज्यादा तेरी ही ख़राब है
ख़राब सी ख़राब है कहा नहीं जाता है
पूछो मत प्यारेलाल देखा नहीं जाता है
मेरी मौत शान से और तेरी अपमान से
द्रोपदी सा हाल होता तेरा इन्सान से

रविवार, 2 दिसंबर 2007

रातें ताे लंबी हुई दिन हाे गये बरबाद
धूप खिली ताे लीजिए मूंगफली का स्वाद
रातें ताे लंबी हुई दिन हाे गये बरबाद
धूप खिली ताे लीजिए मूंगफली का स्वाद