बुधवार, 15 अप्रैल 2020

लाॅकडाउन 2

मोदी जी....सुनो:-

धीरे धीरे ही सही बीते इक्किस वार
सोम गया मंगल गया कब बीता बुधवार
कब बीता बुधवार हो गया अजब अचंभा
लगता है इतवार हो गया ज्यादा लंबा
दाढ़ी भी लंबी हुई बढ़ गये सर के बाल
बिना छुरी के कर रही पत्नी हमें हलाल

(सिर्फ हास्य के निमित्त)

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

लाॅकडाउन

लक्ष्मण रेखा खिंच गयी सब लोगों के द्वार
इक्किस दिन घर में रहो अपने मन को मार
अपने मन को मार मिला है सुंदर मौका
बीवी मारे मौज करो तुम चूल्हा चौका
हम तो हैं तैयार सहेंगे सभी झमेले
ये कोरोना वायरस कोई जान न ले ले

रविवार, 9 अगस्त 2015

हरिगीतिका

"आओ कविता करना सीखें" आज का छंद....
*हरिगीतिका* में --------विरहणी---


जब भी हुआ यह भान मानव, आपको घनघोर से
तब ही बनी यह धारणा कुछ, नाचते मन मोर से
अब आ गया उद्दात सावन, गीत गा मल्हार का
शिव आरती कर धार ले व्रत, प्यार से मनुहार का

खुशियाँ मिली तन मोद में मन, हास है परिहास है
पर जी नहीं लगता उसे उर, प्रीत पावन प्यास है
दुख रोज कोमल भावना पर, है गिला इस बात से
घन भी रहे अनजान भौंचक, आँख की बरसात से
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गुरुवार, 9 जुलाई 2015

कुछ ऐसा हो तो-

मंदिर में हो आरती मुसलिम पढ़े नमाज
दोनों का सम्मान हो ऐसा बने समाज

गुरुद्वारे में गूंजती ग्रंथी की आवाज
गिरजाघर में पोप को माने सकल समाज

ऐसी अपनी कामना होवे सबको खाज
राज नहीं तो खाज में
लूटे मजा समाज

शनिवार, 26 जुलाई 2014

शहीदों के परिवारी सदस्यों को नमन


मातृभूमि की रक्षा से देह के अवसान तक
आओ मेरे साथ चलो तुम सीमा से शमशान तक।
सोये हैं कुछ शेर यहां पर उनको नहीं जगाना
टूट न जाए नींद किसी की धीरे धीरे आना

सैनिक का बलिदान अकेला नहीं है। उसके साथ उसके परिजन भी बलिदान करते हैं। शहीद का शव ताबूत में परिजनों के बीच आता है, कल्पीनाओं में मैं वहां खड़ा हूं और सोच रहा हूं……..काश इस शहीद को मैं आवाज दूं और ये जी उठे…..

चाहता हूं तुझको तेरे नाम से पुकार लूं,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूं

धूल में मिला दिया घुसपैठियों की चाल को
गर्व से ऊंचा उठाया भारती के भाल को
दुश्मेनों को रौंदकर जिस जगह पे तू मरा
मैं चूम लूं दुलार से पूजनीय वो धरा
दीप यादों के जलाऊं काम सारे छोड़कर…
चाहता हूं भावनाएं तेरे लिए वार दूं, ए शहीद आ तेरी, मैं आरती उतार लूं

सद्भावना की ओट में शत्रु ने छदम किया,
तूने अपने प्राण दे ध्व स्त, वो कदम किया
नाम के शरीफ थे फौज थी बदमाश उनकी,
इसीलिए तो सड़ गयीं कारगिल में लाश उनकी
लौट आया शान से तू तिरंगा ओढ़कर…
चाहता हूं प्यार से तेरी राह को बुहार दूं, ए शहीद आ तेरी, मैं आरती उतार लूं

कर गयी पैदा तुझे उस कोख का एहसान है,
सैनिकों के रक्तो से आबाद हिन्दुवस्ता न है
धन्यय है मइया तुम्हातरी भेंट में बलिदान में,
झुक गया है देश उसके दूध के सम्माभन में
दे दिया है लाल जिसने पुत्रमोह छोड़कर…
चाहता हूं आंसुओं से पांव वो पखार दूं, ए शहीद आ तेरी, मैं आरती उतार लूं

लाडले का शव उठा बूढ़ा चला शमशान को,
चार क्या  सौ-सौ लगेंगे चांद उसकी शान को
देश पर बेटा निछावर शव समर्पित आग को,
हम नमन करते हैं उनके, देश से अनुराग को
स्वनर्ग में पहले गया बेटा पिता को छोड़कर…
इस पिता के पांव छू आशीष लूं और प्याोर लूं, ए शहीद आ तेरी, मैं आरती उतार लूं

पाक की नापाक जिद में जंग खूनी हो गयी,
न जाने कितनी नारियों की मांग सूनी हो गयी
गर्व से फिर भी कहा है देख कर ताबूत तेरा,
देश की रक्षा करेगा देखना अब पूत मेरा
कर लिए हैं हाथ सूने चूडि़यों को तोड़कर…..
वंदना के योग्य  देवी को सदा सत्का र दूं, ए शहीद आ तेरी, मैं आरती उतार लूं

रो पड़ी है ये जमीं आसमां भी रो दिया
एक प्‍यारी सी बहन ने भाई अपना खो दिया
ताकती राखी लिए तेरी सुलगती राख में,
न बचा आंसू कोई उस लाडली की आंख में
ज्यों  निकल जाए कोई नाराज हो घर छोड़कर…
चाहता हूं भाई बन मैं उसे पुचकार दूं, ए शहीद आ तेरी, मैं आरती उतार लूं

कौन दिलासा देगा नन्हीं बेटी नन्हें बेटे को,
भोले बालक देख रहे हैं मौन चिता पर लेटे को
क्या  देखें और क्या  न देखें बालक खोए खोए से,
उठते नहीं जगाने से ये पापा सोए सोए से
चला गया बगिया का माली नन्हें पौधे छोड़कर…
चाहता हूं आज उनको प्यानर का उपहार दूं, ए शहीद आ तेरी, मैं आरती उतार लूं

अंत में पा‍कस्तिान को एक सलाह एक चेतावनी............

विध्वंंस की बातें न कर छोड़ आदत आसुरी
न रहेगा बांस फिर और न बजेगी बांसुरी
कुछ सीख ले इंसानियत तेरा विश्वं में सम्मान हो
हम नहीं चाहते तुम्हारा देश कब्रिस्ताान हो
उड़ चली अग्नि अगर आवास अपना छोड़कर
चाहता हूं पाक को आज फिर ललकार दूं।ए शहीद आ तेरी, मैं आरती उतार लूं

शुक्रवार, 9 मई 2014

जन संदेश में प्रकाशित

अत्र कुशलम् तत्रास्‍तु
·         पी के शर्मा

वो जमाने चले गये जब लोग ख़त लिखा करते थे। डाकिया भी समाज में एक महत्‍वपूर्ण स्‍थान पाता था। लेकिन आजकल डाकिया, रुपये की कीमत भर रह गया है। कारण सब जानते हैं। अब एस एम एस आते जाते हैं। चार दिन का काम चार मिनट में होने लगा है। अत्र कुशलम् तत्रास्‍तु के दिन लद गये हैं। इस जमाने में तो शमशाद बेगम भी कुछ यूं गातीं-- एस एम एस लिख रही हूं, दिल-ए-बेकरार का। मोबाइल में रंग भर के तेरे इंतजार का। ख़ैर...  मैं आज अचानक अपने मित्र अविनाश से मिलने जा पहुंचा। बोला आ बैठ... तुझसे ही मिलने की तलब लगी थी, ठहर जरा मैं एक ख़त लिख लूं। इस खत में एक प्‍यारा-प्‍यारा पैगाम भेज रहा हूं। मैंने उसे हैरानी से निहारते हुए पूछा उम्र के अगस्‍त-सितंबर में क्‍या प्‍यारा-प्‍यारा लिखने लगे हो?  बोला गलत मत सोच..मैं इस पत्र-लेखन कला को जिंदा रखना चाहता हूं और सिंगापुर के व्‍यवसायी लिम सू सेंग को भारत आने का न्‍यौता भेज रहा हूं। एक तीर से दो शिकार कर रहा हूं।
कौन है ये... लिम सू सेंग ?  बोला, है एक बेचारा सरकार का मारा सिंगापुरी व्‍यवसायी। इस पर इल्‍जाम है कि इसने अपने कुत्‍ते को सताया और भूखा रखा। उसकी सेहत का ख्‍याल नहीं किया। अदालत ने इसे करीब 5 लाख का जुर्माना ठोक दिया है। है न हद दर्जे की नाइंसाफी। अरे उसका कुत्‍ता वो भूखा रखे, प्‍यासा रखे, इससे तुम्‍हें क्‍या। सच पूछो तो ऐसी-वैसी खबरें पढ़कर मन करेला-करेला होने लगता है। इससे पहले कि बात नीम-नीम होने तक पहुंचे, मैंने उसे न्‍यौता भेज दिया है.... आजा प्‍यारे पास हमारे, काहे घबराए। यहां किसी बात का डर नहीं है। ख़बरें बतातीं हैं, यहां तो औलाद ही वाल्‍देन को सताती है और सजा नहीं पाती है। कत्‍ल कर दो, तो भी कोई बात नहीं। गवाह तोड़ दो, काम ख़तम। किसी को सताना यहां अपराध की श्रेणी में, आ ही नहीं पाता। कुत्‍तों की छोडि़ये, देश की जनता कितनी सतायी जाती है, अगर इसका हिसाब रखा जाने लगे तो...कारागार की शार्टेज होने लगेगी। गिरफ्तारी.... करेगा कौन?  सताने पर सजा होने लगी तो, देश में शासन चलाने का संकट भी पैदा हो जायेगा। मैं उसकी सारी बातें ध्‍यान से सुन रहा था। वो भी जो लिख चुका था उसकी कमैंट्री जारी थी। बोला---

मैंने लिखा है--लमैंने लिखा हैहिसाब नहीं  सू सेंग...... छोड़ दो सिंगापुर। क्‍या रखा है सिंगापुर में?  हमारे यहां तो वैसे ही अतिथि देवो भव: की तूती बोलती है। यहां रोज न जाने कितने भूखे-प्‍यासे सो जाते हैं, कोई हिसाब नहीं। कोई सजा नहीं। सजा किसको दें। पहले तो केस ही दर्ज न हो। कितने सताये जाते हैं, कौन गिने?  गिनती ख़तम ही नहीं होगी। गिनती तो वैसे भी किसी ऐसे गणितज्ञ ने बनाई हैं जिसे समाप्‍त करना ही नहीं आता था, नतीजन गिनती अनंत तक है। इसीलिए तो आजतक गिनती समाप्‍त नहीं हुई और कभी होगी भी नहीं। शुरू होने के लिए शून्‍य की आवश्‍यकता थी सो भारत ने उसका आविष्‍कार कर ही लिया है। ज्‍यादा गणितीय चीर-फाड़ के लिए दशमलव को भी खोज डाला। भले ही आज पढ़ाई-चोर विद्यार्थी उन खोजी प्रतिभाओं के प्रति अमर्यादित भाषा का प्रयोग करें, जैसी नेता लोग अक्‍सर परस्‍पर करते रहते हैं। ये सच है कि कोई भी गणितज्ञ आज तक गिनतियों का अंत नहीं खोज पाया। मैंने कहा इसमें गिनती क्‍या करेगी ?  उदास होकर बोला हां.... यहां सताने वाले भी कम नहीं, सताए जाने वाले भी कम नहीं और इस बात का किसी को गम नहीं। पर सेंग साहब को मैंने लिख दिया है कि यहां आ कर देखो तो सही। सताने की बात छोड़ो... आपको पीडि़त कुत्‍ते के मरने तक कोई जुर्माना नहीं करेगा। आपका कुत्‍ता... आपके सताने से नहीं, आपकी ही मौत मरेगा और कहा ये जायेगा कि अपनी ही मौत मरा है। 

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

जनसंदेश में........ 20 अप्रैल को प्रकाशित व्‍यंग्‍य

आंसू-आंसू पर नोट
·        पी के शर्मा

मेरा दोस्‍त अविनाश अक्‍सर हंसता हुआ आया करता था, पर न जाने क्‍यूं आज रोता हुआ आया। मैंने ढांढस बंधाया... पूछा क्‍या हुआ ? बोला ढांढस बंधाना कांग्रेस को, मैं तो अपनी मर्जी से रो रहा हूं। आई मीन रोने की प्रैक्टिस कर रहा हूं। मैंने सवाल दागा... इसमें प्रैक्टिस की जरूरत ही कहां है.. आदमी तो पैदा होते ही रोना सीख जाता है। आंसू पोंछकर समझाने लगा...एक खबर छपी है कि चीन में काम की तलाश में दर-दर भटक रहे कलाकारों द्वारा अंतिम-संस्‍कारों में रोने की एक्टिंग करने का चलन जोरो पर है। इसमें इनकम भी होती है। खबर चीन के ‘डेली मेल’ से है।
लो जी... ये क्‍या खबर हुई भला...ये कलाकार तो सुबह-सुबह उठते ही दुआ करते होंगे कि, आज भी कोई... मरे। कल एक मरा था, आज एक नहीं दो-दो मरें। अल्‍लाह मेहरबानी करे, तो सौ-सौ मरें। अभी तक तो अर्थी और कफन बेचने वालों को ही, एक के साथ एक फ्री... वाले ताने (चुटकुले) झेलने पड़ते थे। अब ये रोने वाले कलाकार भी शामिल हो गये इस तानाकशी में। सुना है कि वहां अंतिम-यात्रा में रोने वालों की संख्‍या कम होना, तौहीन की बात है। इसी लिए ऐसे कलाकारों की काफी डिमाण्‍ड है। मैंने प्रश्‍न दागा.... तो इसका मतलब तुम्‍हारा, विदेश जाकर रोने का मन हो रहा है। रोने के लिए भी पासपोर्ट वीजा.... कोई क्‍या कहेगा। एक कलमकार, रोने वाला कलाकार बनेगा।
बोला, ये भी नया बिजनस है... क्‍या बुरा है। रोने वालों की एक-एक टीम को 30-30 हजार तक पारिश्रमिक मिल जाता है। बस जो दमदार दहाड़े मार कर रोयेगा, उसी की कीमत ज्‍यादा। तू भी तैयार हो ले, एक दो को और साथ ले लेंगे, बस... टीम तैयार। मैंने कहा, मुन्‍ना...  रोना है तो, अपने देश में ही बिना पासपोर्ट रो ले। यहां बहुत सारे मुद्दे हैं रोने के लिए। नेताओं के बयान सुन-सुन कर रो ले। मंहगाई को झेल कर रो ले। नेताओं की अकूत संपदा देखकर रो ले। भूखे को रोटी के लिए रोता देख कर रो ले। बोला, यहां पर रोने की कीमत कौन देगावहां आंसू-आंसू पर नोट बरसते हैं।  जो यहां रोते हैं वे नोटो के लिए तरसते हैं। मैं तो वहां जाकर आंसू-आंसू नोट-नोट हो जाना चाहता हूं।   
लोग तो दूसरों के दुख-दर्द में हंसते हैं और ये तो अच्‍छी बात है, कि तुम किसी के दुख-दर्द में रोओगे। पर तुम रोने के पैसे लोगे, बात कुछ जमी नहीं। आंसू बिकने के लिए नहीं होते। अगर होते हैं तो वे असली नहीं हो सकते। मित्र बोला, हूं., समझ तो गया पर काफी देर बाद। चल जल्‍दी कर और तैयार हो ले.... चीन चलेंगे। मैंने फिर से उसकी जल्‍दबाजी पर ब्रेक लगाए और समझाया.... मेरे यार... अगर मैं नकली आंसू रो पाता तो अपने देश में कौन सा पैसे की कमी है ? आजादी के बाद से नेताओं को इन्‍हीं घडि़याली आंसुओं ने घडि़याल बना डाला है। सच माने तो मैं ऐसा घडि़याल नहीं बनना चाहता और न तुझे बनने दूंगा। चल एक हिन्‍दी का शेर सुनाता हूं.. जो मैंने देश में सुनामी आने पर लिखा था। अगर तू समझ सका तो....
                    रोक सको यदि तुम, पोंछ सको यदि तुम-
                    आंसू भी सुनामी है, यदि आंख समंदर है।
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