सोमवार, 30 मई 2011

मोबाइल के सीने में भी दर्द है। हां..............






मोबाइल का दर्द



बहुत लंबा हो गया जब इंतजार

आ गया मैं तार पर होकर सवार

खूब इज्जत थी मेरी भी शान थी

मेरी ट्रिन-ट्रिन भी सुरीली तान थी

था बदन बेकार सा काला कलूटा

दीखता था मैं तुम्हें अच्छा अनूठा


मैं पधारा जब तुम्हारे द्वार पर

हो गया लट्टू तुम्हारे प्यार पर

मान में चौकी किसी ने खाट दी

हर पड़ौसी ने मिठाई बांट दी


तुम से ज्यादा थे पड़ौसी साथ मेरे

ले लिए हों जैसे मुझसे सात फेरे

आ गया हूं, मैं नये अवतार में

अब नहीं जुड़ता किसी भी तार में


रह रहा हूं जेब में या हाथ में

अब मजा आता है यूं हर बात में

साथ देता हूं तुम्हारा हर कदम

तुम नहीं हो मेरे सच्चे हमकदम


खोपड़ी के बाल अपने नोच लो

एक शिकवा है हमें अब सोच लो

खूब उंगली पर नचाया था जिसे

अब अंगूठा क्यों दिखाते हो उसे

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