रविवार, 9 अगस्त 2015

हरिगीतिका

"आओ कविता करना सीखें" आज का छंद....
*हरिगीतिका* में --------विरहणी---


जब भी हुआ यह भान मानव, आपको घनघोर से
तब ही बनी यह धारणा कुछ, नाचते मन मोर से
अब आ गया उद्दात सावन, गीत गा मल्हार का
शिव आरती कर धार ले व्रत, प्यार से मनुहार का

खुशियाँ मिली तन मोद में मन, हास है परिहास है
पर जी नहीं लगता उसे उर, प्रीत पावन प्यास है
दुख रोज कोमल भावना पर, है गिला इस बात से
घन भी रहे अनजान भौंचक, आँख की बरसात से
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5 टिप्‍पणियां:

टिप्‍पणी की खट खट
सच्‍चाई की है आहट
डर कर मत दूर हट