शनिवार, 31 मई 2008

लोग कहते हैं, ये तो कहते ही रहेंगे

करने को हाथ पीले बाबुल का भाग्‍य कैसा
देता दहेज वर को लेकर उधार पैसा
वो कर्ज में दबेगा ये नोट हैं लुटाते
खुलती है रम की बोतल लब जा़म से लगाते
यूं ही सब पैसे की बरबादी हो रही है
लोग कहते हैं
शादी हो रही है

शुक्रवार, 30 मई 2008

फिर वही ' लोग कहते हैं'

अब तक स्‍वछंद चिड़िया आजाद इस गगन में
उड़ चली उधर ही जहां चाह आयी मन में
बंध गयी है उसकी उड़ानों की सीमा
एक अदद प्राणी से बंधकर है जीना
खतम आज उसकी भी आजादी हो रही है
लोग कहते हैं
शादी हो रही है।

गुरुवार, 29 मई 2008

फिर वही ' लोग कहते हैं'

अब तक स्‍वछंद भंवरा, हर डाल पे चमन में
गाता रहा सुरीले हर गीत निज लगन में
फंस गया भंवर में भंवर भोला भाला
किया कैद उसको एक कली ने डाल माला
खतम आज उसकी आजादी हो रही है
लोग कहते हैं
शादी हो रही है।

गुरुवार, 15 मई 2008

लोग कहते हैं लोग कहते हैं

तपती हुई प्रकृति गर्मी से झुलसकर,
सावन के आते ही वसुधा पे उतरकर
बादल की मशक लेकर तन मन को धो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है।

कुरूप हो न जाए जो हो गया है मैला
मौसम की धूल का न रहे दाग पहला
वसुंधरा अपने दामन को धो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है।

चांद और बदली में हो गयी खटपट
रूठी हुई बदरिया सूरज से करके घूंघट
सिसकियां भर भर के रो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है।

शनिवार, 3 मई 2008

जानवरी ठिठोली

हाथी, ऊंट से
हाथी बोला ऊंट से तुम क्‍या लगते हो ठूंठ से
कमर में कूबड़ कैसा है गला गली के जैसा है
दुबली पतली काया है कब से कुछ नहीं खाया है
हर कोने से सूखे हो लगता बिलकुल भूखे हो
कहां के हो क्‍या हाल है लगता पड़ा अकाल है
ऊंट, हाथी से
ऐ भोंदूमल गोलमटोल मोटे तू ज्‍यादा मत बोल
सबसे ज्‍यादा खाया है तू खा खाकर मस्‍ताया है
फसलें चाहे अच्‍छी हों गन्‍ना हो या मक्‍की हो
तेरे जैसे हों दो चार तो हो जायेगा बंटाढार
जैसा अपना इण्डिया गेट देख देखकर तेरा पेट
समझ गये हम सारा हाल क्‍यों पड़ता है रोज अकाल
सब कुछ तू खा जायेगा तो ऊंट कहां से खायेगा