बुधवार, 15 जनवरी 2014


चुप-चुप चलती रेल



बच्चो पहले देखी होगी छुक-छुक करती रेल
हुई तरक्की देखो अब तुम चुप-चुप चलती रेल

चाहे कोई हल्का सा है चाहे कोई भारी है
जात-पांत का भेद नहीं सबके लिए सवारी है

पण्डित जी भी करें यात्रा जिन सीटों पर गाड़ी में
उन सीटों पर साथ विराजें मुल्ला लंबी दाढ़ी में

पहना है पंजाबी बाना चमक रही तलवार भी
इन दोनों के बीच घुसे जब पगड़ी में सरदार जी

कुछ मद्रासी कुछ गुजराती भालो आछे बंगाली
बैठ बिहारी खैनी रगड़ें दे चुटकी और दे ताली

कोई मराठी कोई असमिया कोई है मेहसाणे का
हाथ में हुक्का लिए खांसता ताऊ है हरियाणे का

सफर सुहाना हो जाए जब सबको दूर घुमाए जी
पूरब पष्चिम उत्तर दक्षिण सबको छूकर आए जी

एक्सप्रैस हो या पेसेंजर या हो डब्बा मेल का
सर्वधर्म सद्भाव बनाए बड़ा बड़प्पन रेल का
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