रविवार, 9 अगस्त 2015

हरिगीतिका

"आओ कविता करना सीखें" आज का छंद....
*हरिगीतिका* में --------विरहणी---


जब भी हुआ यह भान मानव, आपको घनघोर से
तब ही बनी यह धारणा कुछ, नाचते मन मोर से
अब आ गया उद्दात सावन, गीत गा मल्हार का
शिव आरती कर धार ले व्रत, प्यार से मनुहार का

खुशियाँ मिली तन मोद में मन, हास है परिहास है
पर जी नहीं लगता उसे उर, प्रीत पावन प्यास है
दुख रोज कोमल भावना पर, है गिला इस बात से
घन भी रहे अनजान भौंचक, आँख की बरसात से
-----------------

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

कुछ ऐसा हो तो-

मंदिर में हो आरती मुसलिम पढ़े नमाज
दोनों का सम्मान हो ऐसा बने समाज

गुरुद्वारे में गूंजती ग्रंथी की आवाज
गिरजाघर में पोप को माने सकल समाज

ऐसी अपनी कामना होवे सबको खाज
राज नहीं तो खाज में
लूटे मजा समाज