मीटिंग ए माइल स्टोन के एक दृश्य से उपजी प्रतिक्रियात्मक कविता
गंगा के तट पर
पत्थर के पट पर
रजक धोता है
हमारे कपड़ों का मैल और चीकट
साथ में धोना चाहता है
अपनी विपन्नता का संकट
गंगा के किनारे
जी रहा है इसी आशा के सहारे
पानी में होकर भी
पानी से नहीं,
भीगा है पसीने से
तरबतर
तर जायेगा
भागीरथ के पुरखों की तरह
पतित पावनी गंगा है न
ये भी जीवन की शहनाई है न
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साथ में धोना चाहता है
जवाब देंहटाएंअपनी विपन्नता का संकट
क्या खूब कहा है ....
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सही कहा है चंदन ने
जवाब देंहटाएं, मत है सम्मत
विपन्नता को बदलना चाहते हैं सब
अब प्रसन्नता में, जुटे हुए हैं जब
बदल ही डालेंगे, कर्मवंदना करेंगे।