माननीय संगीता पुरी जी, ललित शर्मा, इरफान भाई, खुशदीप जी और आप सबका मैं आभारी हूं। ई मेल, फोन काल्स और टिप्पणियों के माध्यम से माननीय ओमकार चौधरी, दैनिक हरिभूमि के संपादक, व्यंग्ययात्रा और गगनांचल के संपादक भाई प्रेम जनमेजय, जॉकिर हुसैन कॉलेज के प्रिंसीपल दिविक रमेश जी, उड़नतश्तरी में बैठे भाई समीरलाल जी, ताऊपहेली के पी सी मौदगिल जी, प्रताप सहगल, अशोक पांडेय, गिरीश पंकज, परिकल्पना ब्लॉगोत्सव 2010 के भाई रवीन्द्र प्रभात जी, शेफाली पांडेय, अनीता कुमार, डीएलए आगरा के डॉ. सुभाष राय जी जबकि सबका उल्लेख करना संभव नहीं है।
आप सब अपना कीमती समय निकाल कर यहां पर आए हैं जबकि गारंटिड यहां पर वे सब सुविधाएं नहीं हैं और न मिल सकती हैं जो हमें अपने घर पर या कार्यालय में मिलती हैं। यहां पर भी सबके मन में यह इच्छा है कि अविनाश जी मेरा भी उल्लेख करें। सबके नाम का इस मिलन समारोह के संपन्न होने पर धन्यवाद प्रस्ताव में अवश्य उल्लेख किया जाएगा और यह काम मैं बिना पहले से तय किए माननीया संगीता जी और ललित शर्मा जी को मिलकर सौंपता हूं। आप सबने अपने नाम, ब्लॉग, ई मेल इत्यादि विवरण भर दिए होंगे। उसी की मदद से हमारी दिल्ली हिन्दी ब्लॉग जगत में पधारे माननीय अतिथि उन सबका उल्लेख करेंगे।
हमें मंच की जरूरत क्यों है जबकि यह सच्चाई है कि आज यहां मौजूद प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में एक नेक मंच है। ब्लॉग को मैं एक मंच ही मानता हूं। वो आपको एक अलग ऊंचाई देता है। आप सबके साथ होते हुए भी अपने ब्लॉग के जरिए अपनी अच्छाईयों के साथ अलग दिखाई देते हैं। आप महसूस कीजिए एक ब्लॉग ही व्यक्ति की सच्ची अभिव्यक्ति है और टिप्पणी उसकी पहचान है। मंच तो हम सबके पास है बस हमें अपने सच्चे मन से उस पर अपने अच्छे विचारों का खजाना लुटाने के लिए सदा तैयार रहना चाहिए।
ब्लॉग जगत और वेबसाइट में जमीन आसमान का अंतर है तो हम जमीन पर ही रहना चाहेंगे। आसमान पर क्यों चढ़ें और वहां से फिर नीचे झांकने के चक्कर में लगे रहें जब तक कि कोई बहुत ही मजबूरी हमारे आगे नहीं आए।
हिन्दी ब्लॉगिंग को उन दोषों से दूर रखने का प्रयास करेंगे जो टी वी, प्रिंट मीडिया और अन्य माध्यमों में दिखलाई दे रहे हैं।
द्विअर्थी संवाद और शीर्षकों से बचे रहेंगे। जो भाषा हम अपने लिए, अपने बच्चों के लिए चाहते हैं - वही ब्लॉग पर लिखेंगे और वही प्रयोग करेंगे।
ब्लॉगिंग को पारिवारिक और सामाजिक बनायेंगे, जिससे भविष्य में इसे प्राइमरी शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सके।
ब्लॉगिंग में वो आनंद आना चाहिए जो संयुक्त परिवार में आता है। यहां पर उसकी अच्छाईयां ही हों उसकी बुराईयों से बचे रहें।
कोई किसी की तुलना करता है तो यह उसका निजी विचार है। हम क्यों चाहते हैं कि वो ऐसा ही लिखे जैसा मुझे अच्छा लगता है। सब एक जैसे नहीं हैं तो सबके विचार एक समान कैसे हो सकते हैं। जहां हमें एक समान होना चाहिए वहां पर तो हम प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते हैं1 अनीता कुमार जी ने कल अपने ब्लॉग पर एक समस्या की ओर ध्यान दिलाया है। अगर आपको लगता है कि उसके विरोध में हम सबको उतरना चाहिए तो आप रूकें नहीं पर सोच समझ कर अपने अगले कदम का फैसला लें1
मैंने छपास डॉट कॉम पर अपने इंटरव्यू में कहा था कि जिस प्रकार हम सबके पास मोबाइल हैं और एक नहीं दो दो, तीन भी एक एक के पास। अब सबकी जरूरतें ऐसी हो गई हैं जबकि रोजना शोध रिपोर्ट आती रहती हैं कि यह स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा है। वैसे जिंदगी में पल पल पर जोखिम हैं। पर हमें इन सब चीजों में संतुलन रख कर चलना चाहिए। हम सबका प्रयास होना चाहिए कि जिस प्रकार आज मोबाइल फोन का प्रसार हुआ है उतना ही प्रचार प्रसार हिन्दी ब्लॉगिंग का भी हो परंतु उसके लिए हमें संगठित होना होगा। इसके लिए हमें एक संगठन बना लेना चाहिए। जो ब्लॉगर इस संबंध में पंजीकरण, नियमों इत्यादि की पूरी जानकारी रखते हों वो इस संबंध में कानूनी प्रक्रिया पूरी करते हुए कार्रवाई शुरू कर लें। उसमें कौन किस तरह से जुड़ेगा, किस पद पर रहेगा, यह सब आपसी सार्थक विचार विमर्श से तय किया जा सकता है पर शुरूआत हमें राजधानी से ही करनी होगी। उसमें लिए गए निर्णयों का हम सब ही पालन करेंगे जो नहीं करना चाहें वे स्वतंत्र हैं। हम किसी पर इसे थोपना नहीं चाहेंगे – इसकी अच्छाईयों को देखकर वे बाद में जुड़ना चाहें हमें इतने अच्छे कार्य कर लेने चाहिए। फिर भी कोई नहीं जुड़ता है तो उससे नाराज नहीं होना चाहिए। मैं इस पावन कार्य के लिए आज से ही रोजाना दस रुपये अलग से देना शुरू करता हूं। यह आपस में तय कर लिया जायेगा कि इस राशि को किसके पास रखा जाए और किस प्रकार से उपयोग में लाया जाए। और भी हमारे जो साथी इस मुहिम में हमारे साथ जुड़ना चाहें जुड़ सकते हैं। जो नहीं देना चाहते या देने में समर्थ नहीं हैं – उन्हें इसकी पूरी आजादी है किसी पर कोई बंदिश नहीं है। राशि भी कोई फिक्स नहीं है और जो चाहते हैं राशि न हो, तो किसी के लिए कोई बंधन भी नहीं है।
सबके पास जितने मोबाइल फोन उतने हिन्दी ब्लॉग हों। यह आदर्श स्थिति होगी और इसे पाने के लिए हमें प्रयासरत रहना होगा। इसी प्रकार ब्लॉग तो बन गया पर उस पर पोस्टें लगाना भी जरूरी है लेकिन सिर्फ सनसनी फैलाने के लिए ब्लॉग जैसे शक्तिशाली माध्यम का प्रयोग नहीं करना चाहिए। आपकी बात में दम होगा और सहज होली तो सभी उसका नोटिस लेंगे। यदि थोड़ा सा अपने दिमाग पर जोर डालें तो हम बहुत आराम से उतनी पोस्ट लगा सकते हैं जितनी चाय हम दिनभर में पीते हैं लेकिन अपनी पूरा सकारात्मकता के साथ। जितनी अपने मोबाइल से कॉल करते हैं उतनी टिप्पणियां कर सकते हैं। लेकिन सार्थक टिप्पणियां न हों तो उनका कोई औचित्य नहीं है। मात्र टिप्पणियों की संख्या बढ़ाने के लिए ही न तो टिप्पणी पाने की उम्मीद करनी चाहिए और न ही देनी चाहिए। आपके पास उसमें पोस्ट के संबंध में अलग हटकर कहने के लिए है तो आप अवश्य कहिए। इसी प्रकार टिप्पणी पाने के लालच में कमेंट के साथ लिंक देना, जब तक जरूरी नहीं, मेरा विचार है कि ठीक नहीं है परन्तु सब मेरे विचार से सहमत हों यह भी बिल्कुल ठीक नहीं है। अगर आप ऐसा भी करते हैं तो मुझे कोई तकलीफ नहीं होती है1
ब्लॉग की पोस्टों या टिप्पणियों में अपनी कुंठाओं को जाहिर नहीं करना चाहिए। आपने फिल्मों में ही सही झुग्गियों का माहौल देखा होगा जहां पर शिक्षा का प्रसार नहीं है। इस माहौल में जिस तरह से गाली गलौच का प्रयोग किया जाता है वो किसी को ठीक नहीं लगता। कोई गाली सुनना नहीं चाहता पर देने का मौका मिले तो सब उसका लाभ उठाना चहते हैं। फिर भी ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो न गाली देना चाहते हैं जबकि लेना तो कोई नहीं चाहता। फिर भी समाज में गालियों का बढ़ता माहौल अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी हो सकता है।
जिस प्रकार अपने बच्चों के लाभ के लिए हम सदा सक्रिय रहते हैं, उसी प्रकार ब्लॉगों के भले के लिए जागृत रहना चाहिए। और जो काम हम अपने लिए नहीं चाहते वो दूसरों के लिए भी न करें – देखना सारे फसाद उसी दिन खत्म हो जायेंगे। हम सबको मिलकर हिन्दी ब्लॉग की दुनिया को बेहतर बनाना है। इस बेहतर दुनिया को फिर अपने पास पड़ोस में स्थापित करना है। एक दिन सब मोहल्लों में प्रत्येक नुक्कड़ पर ब्लॉगर मिलन हो रहा होगा फिर अलग से इस प्रकार के आयोजनों की जरूरत नहीं रह जाएगी और यह एक आदर्श स्थिति होगी।
अभी हमें ब्लॉग बनवाने में मदद करनी चाहिए। कंप्यूटर पर हिन्दी का प्रयोग कैसे किया जा सकता है, हिन्दी टाइपिंग जानने वाले तो करते ही हैं जो हिन्दी टाइपिंग नहीं जानते वे भी रोमन में टाइप करके विभिन्न तरीकों से उसका प्रयोग कर रहे हैं। इसके प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी भी हम हिन्दी ब्लॉगरों की है। हम युगों युगों से लड़ते भिड़ते आ रहे हैं – अब जब एक नया माध्यम मिला है तो क्यों न उससे एक दूसरे की भलाई के कार्यों में जुट जाएं। पिछले दिनों आगरा में बीना शर्मा जी से मिला था और उनके प्रयास को आप सब तक पहुंचाया, नुक्कड़ पर आप पिछली पोस्टों में दी गई जानकारी को आप सबके साथ साझा कर सकते हैं।
इन मिलन समारोह में जो लोग विवाद पैदा करना चाहते हैं, वे कहीं अलग से नहीं आए हैं, वे भी हम लोगों में से ही हैं पर क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके पास इतनी क्षमता नहीं है कि वे अपने विचारों से प्रभावित कर पायेंगे इसलिए वे इस तरह के शार्टकट अपनाते हैं। उनकी सोच के अनुसार उनका तरीका सही है। उन्हें उनके तरीके में लगे रहने दें, उन्हें इग्नोर करें – आप देखना जल्दी ही वे भी अपने सच्चे रूप में हमारे सामने आ जायेंगे। आप जितना उनकी चर्चा करेंगे उतना उन्हें मजा आने लगेगा और फिर वे इस तरह की उटपटांग हरकतें करेंगे जिससे मनोरंजन भी होगा और नुकसान भी होगा। उसकी जिम्मेदारी भी हमारी ही बनती है। हमें उन्हें इग्नोर करने का धैर्य अपने भीतर पैदा करना होगा।
पहले हम सबकी लोकप्रियता का दायरा इतना व्यापक नहीं था मात्र तीन साल पहले आप मुझसे परिचित नहीं थे या आपसे जितने लोग परिचित हैं उतने नहीं रहे। हमविचारों का आपस में दुनिया के कोने कोने से आकर मिलना एक वैचारिक क्रांति की शुरूआत है। इस क्रांति का उद्घोष हो चुका है इसे सही दिशा पर चलाने के लिए लगे रहना चाहिए। जबकि हम जितना लोकप्रिय होते जाते हैं उतना ही अधिक लोकप्रिय होने की भूख प्यास बढ़ती जाती है। हमें इस पर भी कंट्रोल करना सीखना होगा। वैसे यह मानव कमजोरी है – सबके मन में रहता है कि सब उसे जानें। सब जानेंगे पर सब आपको पसंद करें इसके लिए आपको भी सबके अच्छे कार्यों को पसंद करना होगा और इसे मिली लोकप्रियता स्थाई होगी। पर इस लोकप्रिय होने के चक्कर में गलत चीजों को तो पसंद मत कीजिए, न ही ऐसा चाहें कि आपके गलत कार्यों को कोई पसंद करे। अपनी आलोचना को सहना सीखिए और अपनी कमियों को स्वीकार करते हुए, उनसे बचने की ताकत विकसित कीजिए न कि आलोचना को ही नकारने लग जायें। आलोचना को नकार कर भ्रम में तो जिया जा सकता है परंन्तु आगे नहीं बढ़ा जा सकता।
ब्लॉग को पाठ्यक्रम में जगह मिलनी चाहिए जब कंप्यूटर पहली कक्षा से और अब तो कक्षा में प्रवेश लेने से पहले ही सबको ललचा रहा है। परीक्षा पाठ्यक्रमों में ब्लॉग बनाने, कंप्यूटर में हिन्दी व अन्य भाषाओं में काम करना शामिल कर दिया जाए। आप देखेंगे कि आपके देखते ही देखते यह होगा कि हिंदी एक दिन अवश्य ही विश्वभाषा की के जलवे को हासिल कर लेगी।
जीवन में हमें कुछ उसूल बना लेने चाहिए कि सदा अच्छाईयों को अपनायेंगे और बुराईयों को छोड़ते जायेंगे। अपनी बेहतर जीवन दृष्टि से ही हम अपने ब्लॉग । समय सबके पास कम है उस समय का उपयोग करना सीखना चाहिए न कि उस कम समय को और कम कर लें। अपनी ऊजा को सबके हित में काम लायें न कि कोई गलत कर रहा है तो उसे सुधारने में जुट जाएं बल्कि उसे अनदेखा करना भी उसका सुधार करना ही है। अगर आप उसे नोटिस करेंगे, तवज्जो देंगे तो अपनी ऊर्जा तो आप बेकार करेंगे ही, उसको बढ़ावा देने के जिम्मेदार भी आप ही होंगे। । अपने लोकप्रिय होने के लालच में परोक्ष तौर पर आप उसे बढ़ावा देने लगते हैं। इस कमजोरी को अपने ऊपर मत हावी होने दें।
आप सबका और पूरे हिंदी ब्लॉग जगत के स्नेह और आशीर्वाद का मैं आभारी हूं कि आपने मुझे इतना मान दिया है जबकि यह मेरा मान नहीं है, यह जिन अच्छाईयों का मान है, उसे आप अपने जीवन में लागू करेंगे तो आप भी मेरी जगह ले सकेंगे और मुझे उस दिन सच्ची खुशी होगी जब सब अचछाईयों के प्रचार प्रसार में जुट जायेंगे। तब सबको सब उसके बेहतर रूप में जानेंगे- मेरी पहचान खो जाए पर आप सबको अच्छी पहचान मिले मेरी यही कामना है। मुझे जो पहचान मिली है वो अद्भुत है – वो अद्भुत अहसास आपको भी होना चाहिए। यह मुश्किल नहीं है पर इसके लिए संयम रखना होगा।
इस हिन्दी ब्लॉग जगत में मुझे इतने बड़े भाईयों का आशीर्वाद मिल रहा है, छोटे भाईयों का प्यार मिल रहा है, मुझे चाचाजी कहकर जो आदर दिया गया है। बहुत सी बहनें मुझे मिली हैं। मां और दादी मिली हैं। यकीनन सारे रिश्तों संबंधों का भरपूर लुत्फ आ रहा है। जिंदगी बहुत हसीन हो गई है। ऐसी ही बनी रहे। यही कामना है। आप भी ऐसा ही करते रहें तो आपको भी लोकप्रिय होने से कोई नहीं रोक सकता है।
हमें हिन्दीहित को ध्यान में रखकर विकीपीडिया पर हिन्दी की समृद्धि के लिए भी कार्यों की शुरूआत करनी है। इस संबंध में अगले ब्लॉगर मिलन में एक कार्यशाला शीघ्र ही आयोजित की जाएगी जिसमें आशीष भटनागर जी इसमें सक्रिय होने की प्रक्रिया और इसके लाभ से आपका साक्षात्कार करवायेंगे।
और अब अंत में
मैं अधिक समय न तो विवादों के बारे में चर्चा करके और न यहां मौजूद कुमार जलजला इत्यादि की चर्चा में गंवाना चाहूंगा। मैं यह कहूंगा कि हमें उन स्थितियों को सदा इग्नोर करते हुए चलना है। अगर उस पर प्रतिक्रिया दी जाएगी तो उस प्रतिक्रिया पर प्रतिप्रतिक्रिया होगी जो कि स्वस्थ नहीं होगी और स्वस्थ नहीं है वो हमारा रास्ता नहीं है। हमें उससे बचकर निकलना है जिस प्रकार सड़क बन रही हो तो आप कोलतार या न बन रही हो तो गड्ढों इत्यादि से बचकर निकलते हैं। आप उनसे उलझते तो नहीं हो तो फिर ब्लॉग पर क्यों नहीं धीरज रख पाते जबकि वहां पर हमारे पास समय की भी कमी है और उस कम समय को हम गैर जरूरी कार्यों में लगाकर और कम कर रहे हैं।
जय हिन्दी ब्लॉगिंग।
aayojan ki safalta par badhaai !
जवाब देंहटाएंशब्द शब्द हिन्दी, ब्लोग और ब्लोगर के हित मे
जवाब देंहटाएंसाधूवाद
बडी ख़ुशी हुई सब को ईकठ्ठा देखकर। ब्लोगर जय हो!!!!!
जवाब देंहटाएंBahut badhiya
जवाब देंहटाएंसहमत हैं आपसे,आप सभी को इस सफ़ल मिलन समारोह की बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंवाचस्पतिजी के विचार तो सुन लिए थे कल। आज विस्तार से आपने पढ़वाए, आभार पवन जी।
जवाब देंहटाएंमैं आपके साथ हूं। बस बता दीजिएगा मुझे क्या करना है। जहां दस्तखत करने बोलेंगे कर दिया जाएगा।
जवाब देंहटाएंbadhiya, satyavachan.
जवाब देंहटाएंबधाईयां
जवाब देंहटाएंjai bloging...shubh blogin sundar vichar. aise hi vicharo se mahakataa rahega blog-baag..
जवाब देंहटाएंसहमत हैं आपसे,आप सभी को इस सफ़ल मिलन समारोह की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंअविनाश भाई का एक एक शब्द महत्वपूर्ण और अनुकरणीय है हमारे लिए भविष्य में इसका मोल बढेगा यकीनन । दिल्ली ब्लोग्गर्स में अविनाश भाई एक स्तंभ की तरह हैं जिनके इर्द गिर्द परिक्रमा करने का आनंद और सुख अनुपम है ।
जवाब देंहटाएंमजा आगया बाधाइया ......यह फोरम रुपी संगठन तेरे मेरे से दूर .................. सब का होगा हम सदस्यता को तै.............यार है खबर पर पहुच भी जायेंगे
जवाब देंहटाएंलिखने से पहले क्षमा
जवाब देंहटाएंजब ब्लोगेर्स मिलते हैं तो कोई गीत गजल आदि नहीं प्रस्तुत करते कभी गई नहीं ब्लोगर् की संथा में पर जमशेदपुर जनवादी लेक्ख संघ में सम्मान मिला .और ना ही मुझे हिंदी मात् भाषा लिखनी आती है
कृपया व्याख्या से लिखें
आभार
आशीर्वाद के साथ गुड्डोदादी चिकागो अमेरिका से
अविनाश भाई ब्लाग को बहुत गहराई से लेरहे हैं और ऊंचाई पर पहुंचा रहे हैं आप के अथक प्रयासों को मेरी हार्दिक शुभ काम नाएँ .
जवाब देंहटाएंअविनाश जी के विचार और भाषण सुनने की अतीव इच्छा थी, जिसे किन्हीं विशेष कारणॊं से सुनने से वंचित रह गया था। उनके निमंत्रण पर मैं इस कार्यक्रम में जाने की हार्दिक इच्छा रखने पर भि न जा पाया। किंतु अब यहां पढ़कर लग रहा है, कि हाम कुछ अंश तो मैंने भी अनुभव कर लिया उस सभा में उपस्थित रहने का।
जवाब देंहटाएंमैं हिन्दी विकिपीडिया में प्रबंधक हूं और किसी भी उत्साही को इस विषय पर बताकर मुझे हर्ष होगा। अविनाश जी द्वारा कथित अगली कार्यशाला में भरसक प्रयास करूंगा कि अधिकाधिक लोग हिन्दी विकिपीडिया की ओर आकर्षित हों, सदस्य बनें, योगदान करें और हिन्दी और हिन्दी विकि को उसके चरम पर पहुंचने में सहयोग दे पायें।
आशीष भटनागर
ashishbhatnagar00@yahoo.com
हार्दिक बधाई ,अविनाश जी.
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