मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

सामूहिकता की भावना

दैनिक जन संदेश लखनऊ से प्रकाशित समाचार-पत्र में  'उलटबांसी'

आदमी की कुत्‍तई...
·         पी के शर्मा                                        

जानते हो ‘गीक’ किसे कहते हैं?  एक सर्वे के मुताबिक यह सब्‍द सबसे ज्‍यादा चर्चित हुआ है। ये फैशन से दूर रहने वालों के लिए इस्‍तेमाल होने वाला शब्‍द है। कालिंस आन लाइन शब्‍दकोष के अनुसार ये सबसे चर्चित शब्‍द बन गया है। खबर लंदन से है। खबर कहीं से भी क्‍यों न हो.... मैं नहीं मानता। मानूं भी कैसे ?  सबसे ज्‍यादा चर्चित शब्‍द तो कर्म है। कर्म को हमने गीता के ज्ञान से प्राप्‍त किया है। कर्म में हमारा अटूट विश्‍वास है। हम लोग श्री कृष्‍ण जी के गीता ज्ञान से प्रभावित होकर कर्म के हर रूप में विश्‍वास रखते हैं। हमने इसका कई रूपों में स्‍वागत सत्‍कार किया है। विविधता अधिकतर आनंददायक होती है। जैसे रसगुल्‍ला, रसमलाई, जलेबी, बर्फी और गुलाबजामुन सभी मिठाइयां ही तो हैं। सभी में स्‍वाद अलग है। किसी को कोई स्‍वाद पसंद तो किसी को कोई। पर मिठास तो एक ही है। ये ही मूल स्‍वाद है। सब की माता शक्‍कर ही तो है।
इसी तरह कर्म है। कर्म के भी विविध रूप हैं। जैसे सत्‍कर्म, दुष्‍कर्म, कुकर्म और क्रियाकर्म। लोग इस सभी रूपों को समानता के आधार पर सम्‍मान देते हैं। कर्म करते रहते हैं फल की इच्‍छा नहीं करते हैं। एक फिल्‍मी गाना भी तो है –
कर्म किये जा फल की इच्‍छा मत कर ए इंसान। जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान । ये है गीता का ज्ञान.... ।
कुछ साधू-संत भी यही सिखा रहे हैं। प्रयोग कर करके बता रहे हैं और लोग अनुसरण कर रहे हैं। अब आप ही बताइये ये ‘गीक’ शब्‍द कैसे सर्वाधिक चर्चित हो गया ... ?  ‘गीक’ शब्‍द की औकात ही क्‍या है। दुष्‍कर्म या कुकर्म की औकात देखते ही बनती है। गजब का प्रचार पाता है ये। वैसे, ऐसे कर्म करने के लिए भी हिम्‍मत हैवानियत की दरकार होती है। हैवानियत और पैशाचिक प्रवृत्ति के साथ किये गये कर्म अधिक चर्चित होते हैं। ये शब्‍द इतना चर्चित हो गया है कि इसका प्रयोग अधिकतम लोग करने लगे हैं। शब्‍द का नहीं, कर्म के इस रूप का।  
एक और बात है जो सामाजिक एकता की मिसाल बन रही है। लोग सामूहिक रूप से मिलजुल कर करने लगे हैं। दुष्‍कर्म या कुकर्म को एक नया नाम देना पड़ रहा है। आम भारतीयों की तरह ये शब्‍द भी अंग्रेजी की छाया से नहीं बच पाया। इसे गैंग रेप कहने लगे हैं। कुकर्म के बाद ये गैंगरेप ही चर्चा की बुलंदियों को छूने वाला है। मैं दावे से कह सकता हूं कि ‘गीक’ शब्‍द, शब्‍दकोष से ही झांकता रहेगा, जमाने से मुंह छुपाने की जगह भी नहीं मिलेगी।
अब छोडि़ये ‘गीक’ की बातें, आदमी की बात करते हैं। आदमी नये-नये कर्म करते रहना चाहता है। प्रकृति से, आसपास के वातावरण से कुछ न कुछ सीखता भी रहता है। सीखना एक अच्‍छी आदत है। किसी से कुछ भी सीखा जा सकता है। शेर से, निडर रहना। हाथी से, मस्‍त रहना। गिरगिट से, रंग बदलना। कुत्‍तों से भी वफादारी का पाठ सीखता है। उसकी सूंघने की शक्ति का भी लाभ उठाना बुरी बात नहीं है। निश्चित रूप से आदमी को कुत्‍तों की किसी और आदत को नहीं अपनाना चाहिए था। आदमी को इतना समझदार तो होना ही चाहिए कि वह किसी की कौन सी हरकत से सीखे और कौन सी हरकत से नहीं।
आइये अंत में क्रियाकर्म की बात करते हैं। ये एक ऐसा कर्म है, जो अंतकर्म के नाम से भी जाना जाता है। मैं भी अपने लेख का अंत कर रहा हूं.... इस उम्‍मीद के साथ कि आदमी उन बुराइयों का क्रियाकर्म कर डाले जो समाज में किसी भी कीमत पर नहीं होनी चाहिए ताकि आदमी की कुत्‍तों से तुलना न की जा सके......


पी के शर्मा
1/12 रेलवे कालोनी सेवानगर नई दिल्‍ली
110003
मो 9990005904
P17ksharma@gmail.com



1 टिप्पणी:

  1. आदमी की बातें ही ठीक हैं आदमी हैं नहीं तो उसका डर भी नहीं !
    बहुत खूब !

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टिप्‍पणी की खट खट
सच्‍चाई की है आहट
डर कर मत दूर हट