शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

आप भी पढि़ये हरिभूमि में प्रकाशित एक व्‍यंग्‍य





लिखो भैंस पर
·         पी के शर्मा

आज मैं आपको प्रसंगवश गांव की एक सच्‍ची घटना सुनाता हूं। एक बार भैंस गांव के जोहड़ में स्‍नान कर रही थी और काफी देर से चाचाश्री अपने बड़े भाई के आदेशानुसार उस भैंस को हरी-हरी घास दिखा कर बुला रहे थे। काफी देर से डे..ड़ा.... डे..ड़ा कर रहे थे, लेकिन भैंस थी कि आने का नाम ही नहीं ले रही थी। चाचाश्री का पारा सातवें आसमान को छू रहा था। खैर जैसे-तैसे भैंस बाहर आयी और घेर में पहुंच गयी। चाचाश्री ने उसे खूंटे से बांध कर डण्‍डे से पिटाई शुरू कर दी। कुछ समय बाद पिताश्री पहुंचे तो उन्‍होंने पूछा.... अरे.... ये किस की भैंस को पीट रहा है .. । तुझे अपनी भैंस की पहचान नहीं है... चाचाश्री प्रश्‍नवाचक दृष्टि के साथ बोले... दुनिया में ऐसा कौन है जो अपनी भैंस को पहचानता हो.... ?
  ये तो थी आपको गुदगुदाने वाली एक घटना। अभी-अभी एक और भैंस-प्रकरण का जन्‍म हुआ है देश में। जैसे ही खबर मिली... व्‍यंग्‍यकारों ने, पत्रकारों ने कलम को धार लगाई और पिल पड़े भैंस पर लिखने में। व्‍यंग्‍यकारों की कलम भैंस पर सरपट चल रही है। सब प्रसिद्धि के भूखे हैं। जैसे भैंस प्रसिद्धि को प्राप्‍त हुई है, वैसे ही उनका लेख भी लाइम लाइट में आयेगा। और लेख लाइम लाइट में आयेगा तो लेखक भी। बस... लगा दो तीर निशाने पर। लोहा गरम हो तो चोट चाहिए। कहने का मतलब... गाय के बजाय भैंस इनको साहित्‍य की वैतरणी पार कराएगी। सच में... अक्‍ल बड़ी या भैंस में भैंस ही बड़ी दिख रही है। इधर बेचारी पुलिस हमेशा ही उपहास के काबिल समझी गयी, सो इस बार भी उस पर छींटाकशी हुई ही। मेरी भी समझ में ये बात अब आ पायी है कि नौकरी मिलते ही पुलिसजी के हाथ में डण्‍डा किस लिए थमाया जाता है। आज तो भैंस हैं कल अगर गधे चोरी हुए तो.... इसी तरह काम आयेगा। अंतत: खुशी की बात ये है कि भैंस मिल गयीं और पुलिस की तत्‍परता काबिले तारीफ समझी गयी। कुछ पुलिस वालों का लाइन हाजिर होना कोई मायने नहीं रखता। भैंस पर बहस अब भी जारी है। भैंस को अतिरिक्‍त सम्‍मान दिया ही जाना चाहिए था। ये काली कलूटी भैंस न हो तो काली कलूटी चाय सुड़पनी पड़ती है। सोच लो..... दूध और घी के लाले पड़ जायेंगे... भैंस के बिना।
मैं बहस का रुख दूसरी तरफ मोड़ देना चाहता हूं क्‍योंकि ये सम्‍मान जो भैंसों के हिस्‍से आया, असल में यह नेताओं के हिस्‍से का है। केवल सम्‍मान ही नहीं, ये हिन्‍दुस्‍तान भी इन्‍हीं के हिस्‍से का है। हम और आप तो इसमें रहने का भी टैक्‍स दे रहे हैं, मंहगाई के रूप में। आम-जन का बालक भी गुम हो जाए तो किसी भी पक्ष से भैंसों जैसा सम्‍मान नहीं मिल पायेगा। अगर इन कलमकारों की कलम और देश की पुलिस, किसी बच्‍चे के गुम होने पर भी चले तो, मैं भी सलाम करूं ऐसी मुहिम को, और आप भी। सही है न....  
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1 टिप्पणी:

टिप्‍पणी की खट खट
सच्‍चाई की है आहट
डर कर मत दूर हट