क्या जीवन था....
जब चलती चक्की घोर घोर, सब बोले हो गयी भोर भोर
फिर चून पीस कर चार किलो, गिड़गम पर रखा दूध बिलो
नेती से जब जब रई चली फिर छाछ बटी यूं गली गली
यूं बांट बांट कर स्वाद लिया, बचपन को हमने खूब जिया
क्या जीवन था वो ता...ता...धिन
मैं ढूंढ़ रहा हूं वो पल छिन
जीवन जीने के झगड़े में नंगे पांवों दगड़े में
चलते चलते रेतों में पहुंच गये हम खेतों में
फिर एक भरोटा चारा ले ज्वार बाजरा सारा ले
सूखा सूखा छांट दिया लिया गंडासा काट दिया
गाय भैंस की सानी में यूं बीत गया फिर सारा दिन
मैं ढूंढ़ रहा हूं वो पल छिन
सांझ घिरी जब धुएं से, फिर आयी पड़ोसन कुएं से
लीप पोत कर चूल्हे को ज्यों सजा रहे हों दूल्हे को
फिर झींना उसमें लगवाया, फोड़ अंगारी सुलगाया
जब लगी फूंकनी आग जली, यूं चूल्हे चूल्हे आग चली
कितने चूल्हे जले गांव में दर्द भरा है ये मत गिन
मैं ढूंढ़ रहा हूं वो पल छिन
कुछ पल कभी लौट कर नही आते……………बस यादों में बस जाते हैं।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar prastuti, janab
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
बहुत सुंदर लिखा है .. हमारी जीवनशैली बदलनी चाहिए .. हमने तो कुछ दिनों तक जी भी लिय ऐसे दिन .. आज के बच्चों के नसीब में ये कहां ??
जवाब देंहटाएंबहुत स्टीक ,सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!
जवाब देंहटाएंwaah dhoondhiye ab na milne waale haan yaadon me milenge kahin rajai odhe sote hue...
जवाब देंहटाएंढूंढते रह जाओगे
जवाब देंहटाएंसांझ घिरी जब धुएं से, फिर आयी पड़ोसन कुएं से
जवाब देंहटाएंलीप पोत कर चूल्हे को ज्यों सजा रहे हों दूल्हे को
फिर झींना उसमें लगवाया, फोड़ अंगारी सुलगाया
जब लगी फूंकनी आग जली, यूं चूल्हे चूल्हे आग चली
कितने चूल्हे जले गांव में दर्द भरा है ये मत गिन
मैं ढूंढ़ रहा हूं वो पल छिन
chhu gayi ye lines dil ko. sunder kavita.sunder bachpan.
वाह पवन जी वाह... मजा आ गया... अर्से बाद एक बेहतरीन रचना पढ़ी... साधुवाद...
जवाब देंहटाएंit's a beautiful poem. In fact i think you are a good writer after going through your poems here. :)
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