भूख का नर्तन
रेल की पटरियां
और उन पड़ी दो लाशें
कैसे उठाएं किसे तलाशें
एक आदमी और एक जानवर
दोनों कट गये
इत्तेफाकन,
एक दूसरे से सट गये
लोग उचक-उचक देखते
आते और चले जाते
समय का परिवर्तन हुआ
भूख का नर्तन हुआ
अब भीड़ बढ़ रही थी
लाश उठाने को,
लड़ रही थी
भीड़ आदमियों की थी
लड़ती रही
लाश आदमी की थी
सड़ती रही
भीड़ ने आदमी की लाश का
क्या करना था
उससे किसका पेट भरना था
बहुत मार्मिक है और चोट करती हुई भी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत मार्मिक ..
जवाब देंहटाएंएक कटु सत्य कह गयी है यह कविता.
जवाब देंहटाएंJeevan ka katu satya.
जवाब देंहटाएंतीखा व्यंग है आज की सामाजिक परिस्थी का .... बहुत खूब ...
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