गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

आओ नोट बदलवा लें...... अगर हैं.... तो...




एक थैला नोट और खून का घू्ंट
·        पी के शर्मा

पत्‍नी फोन पर बात कर रही थी। मैं अवाक रह गया। वार्तालाप का पचास परसैंट ही सुन पा रहा था। पत्‍नी भले ही न हो, पर उसकी तेजतर्रारी देखने लायक थी।
कह रही थी.... क्‍या पापा आप भी... बस.... तुम्‍हें और कोई नहीं मिला था.... पूरी दुनिया में बस... एक ये ही मिला.... अब क्‍या पूछते हो हुआ क्‍या है.... कल तक मोहल्‍ले में मेरी शान, रैंकिंग में नंबर वन थी.... आज भारतीय टीम की तरह लड़ कर भी लड़खड़ा रही है... उसका क्‍या... वो तो नंबर दो पर आ जायेगी.... पर मेरी रैंकिंग तो रेत में मिल गयी न.... ये किस नंबर पर आयेगी.... अब क्‍यों पूछते हो, हुआ क्‍या है ? ... हां... हुआ वही है जो नहीं होना चाहिए था... वो है न मेरी पड़ौसन गीतू... बता रहीं थी... बता क्‍या रही थी... मुझे सुना रही थी.... मेरे सीने पर छुरियां चला रही थी... कह रही थी... मैं तो कल गयी थी बैंक.... एक थैला नोट ले गयी थी... बदलवा कर लायी हूं... पुराने थे न... अब रिजर्व बैंक का क्‍या भरोसा... आज तो बदल भी रहा है.... कल बंद कर दिये तो.... रद्दी वाले को बेचने पड़ेंगे... नहीं पापा... आप नहीं जानते उसे.... वो कह रही थी....  अगर 2005 से पहले के नोट बंद हो गये तो हम भी तुम्‍हारी तरह हो जाएंगे.... मैं, खून का घूंट पीकर रह गयी.... [सुबकते हुए]... ये सब आपकी गलती है... आप भी सीधे-सादे पर लट्टू हो गये.... कोई धन्‍नासेठ का बेटा ढूंढ़ते तो.... मैं भी कह देती... मुझे तो आज टाइम नहीं मिला जाने का.... हां अटैची भर कर रख दी है... हो सका तो कल जाऊंगी.... छुरी का जवाब तलवार से देती... साथ में ये भी कह देती कि मैंने तो एक थैला बेचारे रद्दी वाले को वैसे ही दे दिया है... वो भी क्‍या याद करेगा.... उसकी रैंकिंग में भी सुधार होता और मेरी रैंकिंग के साथ-साथ आपकी रैंकिंग भी सुधर जाती.... मेरे मौहल्‍ले में ।
धीरे-धीरे मैं उसके पास पहुंचा तो उधर से रिसीवर में हलो... हलो हो रही थी और इधर ये सुबक-सुबक कर रो रही थी। मैंने उसे धीरज बंधाया.... क्‍यों परेशान होती है... हमारी जो भी कमाई है.... मेहनत की है.... एकदम साफ सुथरी झक्‍क सफेद... नज़र भी नहीं लगेगी.... कहीं भी काला टीका नहीं लगा है और न ही लगाया है। इस पर गर्व कर। घमंड तो सब कर लेते हैं पर गर्व कोई-कोई कर पाता है। मैंने अपने भारतीय रेल सेवाकाल में जिस सावधानी से ट्रेनों का संचालन कराकर करोड़ों भारतीयों की सुरक्षित यात्रा में योगदान किया है, वह दुनिया के किसी भी बड़े धन से कम नहीं है।  बोरे भरे नोटों से इस धन की तुलना हो ही नहीं सकती। मायावी और झूठी शान-औ-शौकत के बजाय सच्‍चाई के मार्ग पर चल कर जो सुख मिलता है वह अतुलनीय है। माया की छाया में रहेगी तो चैन की नींद नहीं ले पायेगी। आ... चल... छोड़... एक-एक कप ग्रीन टी पीते हैं, मुस्‍कुराहट के साथ।


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3 टिप्‍पणियां:

टिप्‍पणी की खट खट
सच्‍चाई की है आहट
डर कर मत दूर हट