शीतलहर के कोप का चला रात भर दौर
धुंध ओढ़कर आ गयी भयाक्रांत सी भौर
सूरज कोहरे में छिपा हुआ चांद सा रूप
शरद ऋतु निष्ठुर हुई भागी डरकर धूप
सूरज भी अफसर बना, है मौसम का फेर
जाने की जल्दी करे और आने में देर
दिन का रुतबा कम हुआ, पसर गयी है रात
काटे से कटती नहीं, वक़्त-वक़्त की बात
रविवार, 27 दिसंबर 2009
सोमवार, 21 दिसंबर 2009
एक व्यंग्य लेख जो आज के हरिभूमि में प्रकाशित है
पीली दाल पीनी है
जब हम पढ़ते थे, विज्ञान के शिक्षक ने बताया था कि पृथ्वी गेंद की तरह गोल है। उसी आकृति की अन्य वस्तुएं जैसे संतरा या खरबूजा भी उस जमाने में थे, तरबूज भी था। लड्डू और रसगुल्ले भी थे। कम से कम स्वाद तो होता। क्यों इस नीरस गेंद का उदाहरण बेहतर समझा गया ? माना कि मीठी चीजों से मधुमेह का खतरा हो सकता था पर तरबूज या खरबूजे से तो खतरा नहीं था। ये फल हैं और मुझे पृथ्वी की तुलना खरबूजे से करना ही अच्छा लगता था। मैंने उस वक्त भी इसका विरोध किया था। पूरी क्लास के ठहाकों ने मेरा पूरा उपहास किया और मैं, न चाहते हुए भी चुप हो गया। ताने सुनने को अलग से मिले, पण्डित है न... खाने की ही बात करेगा। लग रहा था जैसे किसी और को तो खाने से कोई मतलब ही नहीं होता...। मेरा दृष्िटकोण कुछ और ही था, जिसे मेरे सहपाठी तो समझ नहीं पाये थे। ठुकराई जाने वाली चीजों से तुलना करना उचित भी नहीं था। हॉकी में.. स्टिक से मार खाती है, क्रिकेट में.. बैट से धुनाई होती है। फुटबाल में, ठोकरों में रहती है और बॉलीबाल में, मुक्के पड़ते हैं। गेंद का भविष्य सिर्फ और सिर्फ पिटना है। इस पिटती हुई चीज से महान पृथ्वी की तुलना ? न..न..न.. ।अब आप कहेंगे, पृथ्वी की तुलना खरबूजे से ही क्यों ? बताता हूं...बताता हूं....दोनों एक जैसे होते हैं। खरबूजे में फांक होती हैं। आपने ग्लोब देखा होगा.... ग्लोब पृथ्वी की ही प्रतिकृति होता है। उसमें देशांतर रेखाएं होती है। खरबूजे में ये रेखाएं फांक कहलाती हैं। ये फांक पृथ्वी पर भी हैं और सब देशों की स्थिति प्रदर्शित करती हैं। ग्लोब पर भारत भी तीन फांको में कहीं कम और कहीं ज्यादा विस्तारित है। आप जानते ही हैं खरबूजे की फांक खाने के काम आती हैं। बस यही एक कारण है जो मैं पृथ्वी की तुलना खरबूजे से करना सटीक और सही मानता हूं। अब तो आप संतुष्ट हो गये होंगे। अगर आप अभी भी संतुष्ट न हुए हों तो कुछ और बताया जाए? लीजिए बताते हैं। खरबूजे में कीड़े भी लगते हैं। पूरी दुनिया की तो मैं कह नहीं सकता पर भारत के हिस्से आई, कुल जमा तीन फांको में तो लग ही रहे हैं। जिसका जहां दाव चल रहा है, वह वहीं से खा रहा है। यकीन नहीं आता? लगता है अखबार तो पढ़ते हो, पर पूरा नहीं। कहीं कीड़ा, कहीं म....कोड़ा, कोई ज्यादा तो कोई थोड़ा। सभी कुतर रहे हैं। कुतर-कुतर कर अपने को और अपने अपनों को तर-बतर कर रहे हैं। हमें और आपको... पीली दाल खाने की विज्ञापनी घुट्टी पिलाई जाती है और उनके अपने लिए... खरबूजा कट रहा है।
चूहों को तो लोग नाहक बदनाम करते हैं। वैसे कुतरना एक कला है, इस पर किसी का बस चला है? इस बात का कोई महत्व नहीं रह गया है कि किस को कितना समय कुतरने को मिला है। इसीलिए तो कुतरने को, कला का रूप दिया गया है। इस कला की यही खासियत है कि जितना कम समय, उतनी ही अधिक कुतरन।ये लेख पढ़ने के बाद... याद है न... पीली दाल पीनी है। ....................................................................
जब हम पढ़ते थे, विज्ञान के शिक्षक ने बताया था कि पृथ्वी गेंद की तरह गोल है। उसी आकृति की अन्य वस्तुएं जैसे संतरा या खरबूजा भी उस जमाने में थे, तरबूज भी था। लड्डू और रसगुल्ले भी थे। कम से कम स्वाद तो होता। क्यों इस नीरस गेंद का उदाहरण बेहतर समझा गया ? माना कि मीठी चीजों से मधुमेह का खतरा हो सकता था पर तरबूज या खरबूजे से तो खतरा नहीं था। ये फल हैं और मुझे पृथ्वी की तुलना खरबूजे से करना ही अच्छा लगता था। मैंने उस वक्त भी इसका विरोध किया था। पूरी क्लास के ठहाकों ने मेरा पूरा उपहास किया और मैं, न चाहते हुए भी चुप हो गया। ताने सुनने को अलग से मिले, पण्डित है न... खाने की ही बात करेगा। लग रहा था जैसे किसी और को तो खाने से कोई मतलब ही नहीं होता...। मेरा दृष्िटकोण कुछ और ही था, जिसे मेरे सहपाठी तो समझ नहीं पाये थे। ठुकराई जाने वाली चीजों से तुलना करना उचित भी नहीं था। हॉकी में.. स्टिक से मार खाती है, क्रिकेट में.. बैट से धुनाई होती है। फुटबाल में, ठोकरों में रहती है और बॉलीबाल में, मुक्के पड़ते हैं। गेंद का भविष्य सिर्फ और सिर्फ पिटना है। इस पिटती हुई चीज से महान पृथ्वी की तुलना ? न..न..न.. ।अब आप कहेंगे, पृथ्वी की तुलना खरबूजे से ही क्यों ? बताता हूं...बताता हूं....दोनों एक जैसे होते हैं। खरबूजे में फांक होती हैं। आपने ग्लोब देखा होगा.... ग्लोब पृथ्वी की ही प्रतिकृति होता है। उसमें देशांतर रेखाएं होती है। खरबूजे में ये रेखाएं फांक कहलाती हैं। ये फांक पृथ्वी पर भी हैं और सब देशों की स्थिति प्रदर्शित करती हैं। ग्लोब पर भारत भी तीन फांको में कहीं कम और कहीं ज्यादा विस्तारित है। आप जानते ही हैं खरबूजे की फांक खाने के काम आती हैं। बस यही एक कारण है जो मैं पृथ्वी की तुलना खरबूजे से करना सटीक और सही मानता हूं। अब तो आप संतुष्ट हो गये होंगे। अगर आप अभी भी संतुष्ट न हुए हों तो कुछ और बताया जाए? लीजिए बताते हैं। खरबूजे में कीड़े भी लगते हैं। पूरी दुनिया की तो मैं कह नहीं सकता पर भारत के हिस्से आई, कुल जमा तीन फांको में तो लग ही रहे हैं। जिसका जहां दाव चल रहा है, वह वहीं से खा रहा है। यकीन नहीं आता? लगता है अखबार तो पढ़ते हो, पर पूरा नहीं। कहीं कीड़ा, कहीं म....कोड़ा, कोई ज्यादा तो कोई थोड़ा। सभी कुतर रहे हैं। कुतर-कुतर कर अपने को और अपने अपनों को तर-बतर कर रहे हैं। हमें और आपको... पीली दाल खाने की विज्ञापनी घुट्टी पिलाई जाती है और उनके अपने लिए... खरबूजा कट रहा है।
चूहों को तो लोग नाहक बदनाम करते हैं। वैसे कुतरना एक कला है, इस पर किसी का बस चला है? इस बात का कोई महत्व नहीं रह गया है कि किस को कितना समय कुतरने को मिला है। इसीलिए तो कुतरने को, कला का रूप दिया गया है। इस कला की यही खासियत है कि जितना कम समय, उतनी ही अधिक कुतरन।ये लेख पढ़ने के बाद... याद है न... पीली दाल पीनी है। ....................................................................
सोमवार, 14 दिसंबर 2009
जन्मदिन की पहली पहेली : पहेली हूं मैं
आओ यादों को टटोलें
किसका जन्मदिन है
यही बूझें
बधाई तो सब देते हैं
पर पहले जान तो लें
14 दिसम्बर है आज
किसको रहा है याद
करते हुये सब काज
राज कपूर
संजय गांधी
श्याम बेनेगल
और ...
ब्लॉग जगत में से ...
जल्दी यादों को
रिफ्रेशायें फिर
शुभकामनायें दे जायें।
किसका जन्मदिन है
यही बूझें
बधाई तो सब देते हैं
पर पहले जान तो लें
14 दिसम्बर है आज
किसको रहा है याद
करते हुये सब काज
राज कपूर
संजय गांधी
श्याम बेनेगल
और ...
ब्लॉग जगत में से ...
जल्दी यादों को
रिफ्रेशायें फिर
शुभकामनायें दे जायें।
रविवार, 15 नवंबर 2009
तेंदुलकर का इंतजार मैंने भी किया था कभी ...
वैसे तो मुझे बचपन से ही समाचार पत्र पढ़ने में बेहद रूचि रही है। इसी क्रम में एक दिन मैंने एक इंटरव्यू पढ़ा। यह इंटरव्यू था उस समय के विख्यात बल्लेबाज श्री सुनिल मनोहर गावस्कर का । अपने इस इंटरव्यू में गावस्कर ने जो भविष्यवाणी की थी वह कुछ यूं थी '' लोग ये सोचते हैं कि जब मैं क्रिकेट से संन्यास ले लूंगा तो भारतीय टीम का क्या हाल होगा......... ऐसा कुछ नहीं होने वाला। और जो होने वाला है वह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। जी हां .... आने वाले समय में भारतीय टीम को एक ऐसा खिलाड़ी मिलेगा जो गावस्कर को भुला देगा । जी हां .... उसका नाम है ' सचिन '
इस इंटरव्यू में गावस्कर द्वारा की गयी इस भविष्यवाणी को मैं भुला नहीं पाया और जब भी भारतीय टीम का चयन होता तो में उस सचिन को तलाशता था। यूं ही एक दिन जब सचिन का सलैक्शन हुआ टीम के लिए तो मुझे गावस्कर की बात याद हो आयी और सच में जो गावस्कर ने काफी समय पहले कहा था वो सब सरासर सच साबित हुआ और अब यह सच सारी दुनिया के सामने है तथा सारी दुनिया इस महान बल्लेबाज को प्रणाम कर रही है। इस महान बल्लेबाज को मेरा भी प्रणाम और इसके बल्ले को शत शत प्रणाम। हमारे देश के लिए पूजनीय है, दुलारा है सचिन.... मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मैं उस समय को जी रहा हूं जब सचिन मेरे सामने शतक लगा रहा है।
इस इंटरव्यू में गावस्कर द्वारा की गयी इस भविष्यवाणी को मैं भुला नहीं पाया और जब भी भारतीय टीम का चयन होता तो में उस सचिन को तलाशता था। यूं ही एक दिन जब सचिन का सलैक्शन हुआ टीम के लिए तो मुझे गावस्कर की बात याद हो आयी और सच में जो गावस्कर ने काफी समय पहले कहा था वो सब सरासर सच साबित हुआ और अब यह सच सारी दुनिया के सामने है तथा सारी दुनिया इस महान बल्लेबाज को प्रणाम कर रही है। इस महान बल्लेबाज को मेरा भी प्रणाम और इसके बल्ले को शत शत प्रणाम। हमारे देश के लिए पूजनीय है, दुलारा है सचिन.... मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मैं उस समय को जी रहा हूं जब सचिन मेरे सामने शतक लगा रहा है।
बुधवार, 28 अक्टूबर 2009
मिल कर इसका नाम विचारो
एक पैर का संत महान
जिस बिन हम होंगे बेजान
इस गूंगे के हाथ हजारों
मिल कर इसका नाम विचारो
जिस बिन हम होंगे बेजान
इस गूंगे के हाथ हजारों
मिल कर इसका नाम विचारो
शनिवार, 24 अक्टूबर 2009
नाम बता क्या मेरा
ग्रेफाइट की बाडी मेरी लकड़ी के हैं कपड़े
हर कोई उपयोग में लाता हाथ में पकड़े पकड़े
रंग बिरंगी प्यारी प्यारी बड़ा नुकीला चेहरा
तेरे अंदर बुद्वि है तो नाम बता क्या मेरा
हर कोई उपयोग में लाता हाथ में पकड़े पकड़े
रंग बिरंगी प्यारी प्यारी बड़ा नुकीला चेहरा
तेरे अंदर बुद्वि है तो नाम बता क्या मेरा
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009
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