मातृभूमि की रक्षा से देह के अवसान तक
आओ मेरे साथ चलो जी सीमा से शमशान तक
सोये हैं कुछ शेर यहां पर उनको नहीं जगाना
टूट न जाए नींद किसी की धीरे धीरे आना
आंसू दो टपका देना और मन से फूल चढ़ाना
हम शहीदों के परिवारिक जनों के सुखी जीवन की आज फिर कामना करते हैं