शुक्रवार, 18 मार्च 2011

होली पर एक राज़ की बात। जानना चाहोगे ?

क्‍यों लगाते हैं गुलाल, होली में

बहुत पुरानी कहानी है; राजा हिरण्‍यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की सगाई राजस्‍थान में बाड़मेर राज्‍य के एक अतिसुंदर नौजवान राजकुमार ईलोजी से तय कर दी। राक्षस जैसे सुंदर होने चाहिए वैसे ही थे, ईलोजी। खरबूजे जैसे गाल, आम की फांक जैसी आंखें, भैंसे जैसा शरीर, मटके का सा पेट और बेडौल शरीर का मालिक। राजकुमारी होलिका ईलोजी के इसी रूप पर मोहित हो गयी थी।

ईलोजी भी काली-कलूटी होलिका की सुंदरता का वर्णन सुनकर बेहद प्रभावित हो गया और शादी करने को राजी हो गया था। होलिका तपस्विनी भी थी। उसने तपस्‍या द्वारा अपना प्रभाव इतना बढ़ा लिया था कि उसका भाई हिरण्‍यकशिपु भी उसका बहुत सम्‍मान करता था और बड़ी-बड़ी राजनैतिक उलझनों में उससे सलाह लिया करता था। होलिका को बस एक ही दुख था। उसका रंग बिलकुल काला था। इसके विपरीत ईलोजी बेडौल पर, गोरा था। इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए होलिका ने अग्नि की उपासना की और अग्नि देवता से अग्नि जैसा दहकता और दमकता हुआ रूप मांगा। अग्नि देवता ने प्रसन्‍न होकर होलिका को वरदान देते हुए कहा- ‘ तुम जब चाहोगी, अग्नि-स्‍नान कर सकोगी और अग्नि-स्‍नान के बाद एक दिन और एक रात के लिए तुम्‍हारा रूप अग्नि के समान जगमगाता रहेगा’। अब तो होलिका की मौज आ गयी थी। वह नगर के चौक पर चंदन की चिता में बैठकर रोज अग्नि-स्‍नान करने लगी। इससे होलिका का रूप चलती-फिरती बिजली सा चमकने लगा था। ईलोजी अपनी भावी दुल्‍हन की तपस्‍या और रंग-रूप से बेहद प्रभाविता हो चुके थे।

वसंत ऋतु में होलिका ईलोजी के विवाह का दिन निश्चित हो गया था। ईलोजी दूल्‍हा बनकर बारात लेकर होलिका से विवाह के लिए चल दिये। बारात आनन्‍द-उत्‍सव मनाती, नाचती-गाती दुल्‍हन के घर पहुंचने वाली थी। इधर ये बारात आने वाली थी, उधर राजा हिरण्‍यकशिपु एक झंझट में फंस गया था। उसका अपना बेटा राजकुमार प्रह्लाद विद्रोही को गया था और उसके महान शत्रु विष्‍णु का भक्‍त बन बैठा था। एक ओर उसकी दुलारी बहन का विवाह और दूसरी ओर उसके अपने बेटे का विद्रोह तथा विष्‍णु के छल-बल से परेशानी का डर। हिरण्‍यकशिपु ने अपनी बहन से सलाह ली। होलिका.... मैं प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास कर चुका, लेकिन वह हर बार बच जाता है। इधर तुम्‍हारे विवाह में दो दिन शेष बचे है और बारात भी आने ही वाली है... मैं सोचता हूं, इस मंगल कार्य में प्रह्लाद के कारण कोई विघ्‍न न उत्‍पन्‍न हो जाए। भाई की परेशानी भांप कर होलिका बोली भइया... अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मैं आज शाम को जब अग्नि-स्‍नान करूंगी तो प्रह्लाद को भी गोद में लेकर बैठ जाऊंगी। सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। होलिका भाई की परेशानी को खत्‍म करने के चक्‍कर में ये भी भूल गयी कि अग्नि में प्रवेश से न जलने और सुरक्षित निकलने का वरदान सिर्फ अकेली के लिए था। किसी को साथ लेकर अग्नि-स्‍नान से क्‍या हो सकता है, इसके बारे में सोच ही नहीं रही थी। बस यही भूल उसकी मौत का कारण बन गयी। प्रह्लाद तो सुरक्षित बच गया पर होलिका जलकर राख हो गयी।

होलिका दहन के अगले ही दिन बारात दरवाजे पर आ पहुंची।

ईलोजी ने जब सुना कि होलिका अग्नि-स्‍नान करते समय जल मरी है, तो उसे बड़ा दुख हुआ। वे पागल से होकर होलिका की ठंडी चिता के पास जा पहुंचे और अपने दूल्‍हा वेश पर ही होलिका की राख हो मलने लगे और मिट्टी में लोट-पोट होने लगे। ईलोजी का सारा शरीर, मुंह और कपड़े राख में सन चुके थे। बारातियों ने उस पर पानी डालकर उसे धोने का प्रयास किया लेकिन ईलोजी नहीं माने और राख-मिट्टी में लोट-पोट होते रहे। ईलोजी का यह पागलपन देखकर बारातियों और नगर वासियों ने उसका मजाक बनाना शुरू कर दिया और हंसने लगे। किसी ने उसे रसिया कहा और उसके गले से फूलों की माला निकाल कर जूतो की माला डाल दी। ईलोजी ने अपनी प्रेमिका होलिका की याद में सब कुछ सहा और आजीवन कुंआरे रहने की कसम ले ली। तभी से ईलोजी फागुन के देवता कहलाने लगे। र्इलोजी के विवाह और होलिका दहन की याद में आज भी लोग होलिका दहन करते हैं। अगले दिन ईलोजी के साथ होने वाले हंसी मजाक को भी दोहराया जाता है। हां इतना जरूर है, राख के स्‍थान पर गुलाल का प्रयोग होने लगा है और पानी के स्‍थान पर रंग प्रयोग किया जाने लगा है।

राजस्‍थान में तो कई शहरों, गांव और कस्‍बों में आम चौराहों पर ईलोजी की प्रतिमाएं भी बैठाई जाती हैं और उन्‍हें दूल्‍हे की तरह सजाने और संवारकर रंग-गुलाल से पोतने की प्रथा है। ईलोजी हंसी-मजाज के प्रतीक बन गये हैं। राजस्‍थान में इनके नाम पर ईलोजी मार्किट, ईलोजी सर्किल, ईलोजी मार्ग और ईलोजी चौक से स्‍थानों का नामकरण कर उनको सम्‍मान दिया जाता है। ईलोजी के ही रूप में राजस्‍थानी रसिये दूल्‍हे के वेश में सजकर रंग-गुलाल से सने घोड़ी या गधे पर बैठकर धुलैंहडी के दिन गली चौराहों पर घूमते रहते हैं।

( साभार--- ऐतिहासिक कथाएं )

शनिवार, 12 मार्च 2011

हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन, परिकल्‍पना और नुक्‍कड़डॉटकॉम ने कमाल कर दिया


जी हां , हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के लिए एक सकारात्‍मक कदम हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन के साथ शिखर की ओर बढ़ चला है। विवरण जानने के लिए और अपनी राय व्‍य‍क्‍त करने के लिए यहां पर क्लिक कीजिए। जानकारी का खजाना खुलेगा। कहा जा रहा है कि यह मील का पत्‍थर बनेगा। पर मेरा मानना है कि यह मीलों लंबी चट्टान बनेगी। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के स्‍वर्णिम युग की शुरूआत हो चुकी है।
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