कपाल-भाती या कमाल-भाती
एक हैं अण्णा हजारे, भ्रष्टाचार के तालाब में खूब पत्थर मारे। उनसे उठी लहरें अभी शांत भी नहीं हो पायीं थी कि बाबा राम देव आ गये। आ गये और इस कदर छा गये कि वर्तमान सरकार के चार मंत्री आनन फानन में अगवानी करने हवाई अड्डे पहुंच गये। वहां क्या हुआ, पता नहीं पर एक बात जो हमने जानी, वो ये कि इन्होंने जीवन भर योग मुद्राएं सिखायीं और जनता ने सीखीं। देश के आलाओं ने जरा उलट सीख लीं...। इन्होंने ‘ योग की मुद्राएं ’ की जगह ‘ मुद्राओं का योग ‘ सीख डाला। अब कोई इनसे पूछे कि यह मामला थोड़ा उलट ही तो हुआ है। इसमें इतनी हाय तौबा की क्या जरूरत है। आपने ही सिखाया है तोंद में हवा भरो और निकालो। कुछ ने भरी और निकाली। कुछ ने सिर्फ भरी और निकाली ही नहीं। ये उनकी तौंद का माद्दा है। अब अन्ना हजारे चाहते हैं कि जिस पंप से तौंद फुलाई है उसी में पंचर हो जाए...और आप चाहते हैं कि तौंद ही पंचर कर दी जाए। दोनों पहले से सलाह मशविरा कर लेते तो अच्छा रहता न । आलाओं ने बड़े जतन से पाला है...आसानी से कैसे पंचर कर दें।
आपने अपने खिलाफ निर्णय लिया है कभी...? कहावत आ बैल मुझे मार के बजाय लोग तो नयी कहावत बना चुके हैं कि जा बैल उसे मार। लोग अपने पैर पर कभी कुल्हाड़ी नहीं मारते और आप कह रहे हैं कि आलाओं आओ और कुल्हाड़ी पर पैर मारो... कैसे संभव है...? कौन चाहेगा लहूलुहान होना । मरीज खुद इंजेक्शन नहीं लगा पाता और जब लगावाता है तो मारे डर के मुंह फेर लेता है। फिर आप कैसे उम्मीद करेंगे की मरीज अपने फोड़े में चीरा भी खुद लगा ले। ये योग से तो होता नहीं है और इस चीर-फाड़ को करने के लिए मरीज को बेहोश करना पड़ेगा, या फिर उतने अंग का पीर-हरण करना या सुन्न करना लाजमी है। तभी मुद्राओं के योग का चीर-हरण हो सकेगा। वैसे सरकार की हालत कुछ ऐसी हो गयी है, जैसे पित्रत्व की जांच में फंसे तिवारी जी की हो रही है, कि जांच के लिए खून दें या न दें। बड़ा कष्टकारक है। कोई इनके दर्द को समझेगा तब न। किसी की पीड़ा कोई क्यों समझे....।
यह महाभारत कालीन शब्द चीर-हरण पहले दुष्कृत्य माना जाता था। यह एक महासंग्राम का कारण बन गया था। जहां उसने कौरवों को पराजय का स्वाद चखवाया, वहीं पाण्डवों को उनका राज सिंहासन दिलवाया। यहां भी यही सब कुछ हो सकता है जो महाभारत काल में हुआ था, पर ये चीर-हरण हो तो सही...। अब ये चीर-हरण द्रोपदी का न होकर भारतीय मुद्रा का होना चाहिए। किस-किस के पास कितनी ढकी-दबी रखी है। भेद खुलना ही चाहिए। और मजे की बात है कि इस चीर-हरण को दुष्कृत्य नहीं, सुकृत्य कहा जायेगा। मैं सपने देख रहा हूं कि ऐसा सुकृत्य हो, या मेरा सपना, सपना ही रह जायेगा। काश कपाल-भाती के स्थान पर कोई नयी योगमुद्रा का विकास हो जाए जैसे कमाल-भाती।
पी के शर्मा
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