बिल्ली आयी बिल्ली आयी
बिल्ली आयी बिल्ली आयी
दौड़ भाग कर दिल्ली आयी
खेल रहा था लगातार
एक चूहा देखा सड़क पार
आया उसके मुंह में पानी
झट से अपनी मूंछें तानी
तड़प रही थी भूख की मारी
लेकिन क्या करती बेचारी
मोटर गाड़ी कार सवार
सबकी खूब तेज रफ्तार
चले सड़क पर भीड़ अपार
बिल्ली कैसे जाए पार
बिल्ली मौसी हुई उदासी
खड़ी रही यूं भूखी प्यासी
ढलते ढलते हो गयी शाम
नहीं बना खाने का काम
थककर हारी हो गयी बोर
भाग गयी जंगल की ओर
अब न बात बनाएं हम
आओ सब जग जाएं हम
यातायात घटाना अब तो
जन जन की जिम्मेदारी है
वरना
अभी सिर्फ बिल्ली भागी है
आगे हम सब की बारी है
सोमवार, 22 मार्च 2010
गुरुवार, 18 मार्च 2010
सोमवार, 1 मार्च 2010
आओ हंस लें....... भला मानो होली है
दुविधा ही दुविधा उन्हें जो चश्मे बद्दूर
बिन चश्में रहता नहीं है चेहरे का नूर
जब चश्मा हो नाक पर बरसे रंग हजार
कुछ भी तो दिखता नहीं शीशों के उस पार
क्रोधित हों या जतलाएं मुस्काकर के प्यार
नर था ये कोई सांड सा या थी कमसिन नार
दिखने में बाधा करे होली पर हर वक़्त
हालत को मुश्किल करे ये सुसरा कमबख़्त
बिन चश्में रहता नहीं है चेहरे का नूर
जब चश्मा हो नाक पर बरसे रंग हजार
कुछ भी तो दिखता नहीं शीशों के उस पार
क्रोधित हों या जतलाएं मुस्काकर के प्यार
नर था ये कोई सांड सा या थी कमसिन नार
दिखने में बाधा करे होली पर हर वक़्त
हालत को मुश्किल करे ये सुसरा कमबख़्त
भला मानो होली है
निवेदन फागुन से
न जाने कब क्या हुआ बचपन हो गया लुप्त
यौवन छलके देह से फागुन रखियो गुप्त
कुछ छींटे महसूस कर भीगा सारी रात-
मौसम हुआ शरारती खबर बांट दी मुफ्त
भांग और होली
लगती पीकर भांग को होली बड़ी विचित्र
फिर तो भाभी सा लगै देखो अपना मित्र
अगर कहीं वो पास नहीं हो होली में-
रंग डालो जी प्यार से उठा उसी का चित्र
न जाने कब क्या हुआ बचपन हो गया लुप्त
यौवन छलके देह से फागुन रखियो गुप्त
कुछ छींटे महसूस कर भीगा सारी रात-
मौसम हुआ शरारती खबर बांट दी मुफ्त
भांग और होली
लगती पीकर भांग को होली बड़ी विचित्र
फिर तो भाभी सा लगै देखो अपना मित्र
अगर कहीं वो पास नहीं हो होली में-
रंग डालो जी प्यार से उठा उसी का चित्र
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