हिन्दी को मत बांधिए, सप्ताह हो या वार
ये हर पल छाई रहे, जाने सब संसार,
भूल जाइये आज से पखवाड़ों का नाम
रोज रोज फैलाइये हिन्दी का पैगाम
मंगलवार, 31 अगस्त 2010
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
ब्लॉगविद्या के बाबा रामदेव
डीएलए दिनांक 27 अगस्त 2010 के अंक में संपादकीय पेज 11 पर व्यंग्यकार डॉ. राकेश शरद।
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शनिवार, 14 अगस्त 2010
अंतिम इच्छा
आजादी पाने की खातिर अंग्रेजों से नहीं लड़ा था
मरने वाले थे आगे मैं सबसे पीछे दूर खड़ा था
देख रहा था मैं गोरों को वतन लूटते हैं कैसे
दौलत की लत कैसे पनपे कैसे बनते हैं पैसे
सीख रहा था नमक डालना जनता के हर घाव में
कसरत तो लाठी डण्डों से होती रही चुनाव में
जनता को बहकाया है बस झूठे झूठे वादों में
सारा जीवन बीत गया यूं दंगे और फसादों में
देख देख कर पारंगत हूं कैसे राज किया जाता है
भोली भाली जनजनता का कैसे खून पिया जाता है
हो जाए गर ऐसा कुछ मैं भवसागर से तर जाऊं
राजघाट और विजयघाट सा घाट एक बनवा जाऊं
सरकारी शमशान घाट पर अपना नाम लिखा जाऊं
अंतिम इच्छा है बाकी बस कुर्सी पर ही मर जाऊं
मरने वाले थे आगे मैं सबसे पीछे दूर खड़ा था
देख रहा था मैं गोरों को वतन लूटते हैं कैसे
दौलत की लत कैसे पनपे कैसे बनते हैं पैसे
सीख रहा था नमक डालना जनता के हर घाव में
कसरत तो लाठी डण्डों से होती रही चुनाव में
जनता को बहकाया है बस झूठे झूठे वादों में
सारा जीवन बीत गया यूं दंगे और फसादों में
देख देख कर पारंगत हूं कैसे राज किया जाता है
भोली भाली जनजनता का कैसे खून पिया जाता है
हो जाए गर ऐसा कुछ मैं भवसागर से तर जाऊं
राजघाट और विजयघाट सा घाट एक बनवा जाऊं
सरकारी शमशान घाट पर अपना नाम लिखा जाऊं
अंतिम इच्छा है बाकी बस कुर्सी पर ही मर जाऊं
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