मंगलवार, 12 जनवरी 2010

अ...वि....ना.....श........। व्‍यंग्‍य हरिभूमि में प्रकाशित

सांप करोड़ों के

कालोनी में तड़के तड़क बीन की धुन सुनाई दी। होगा कोई सपेरा, सोचकर मैं अखबार पढ़ने में तल्लीन हो गया। अखबार ही तो सुबह का नाश्‍ता है। इसके बिना मुझे चाय भी फीकी लगती है। बीन का शोर बढ़ता ही जा रहा था। कालोनी में भीड़ भी बढ़ने लगी और शोर हमारे घर तक आने का आभास दे रहा था। बालकनी में आकर देखा तो, हैरान रह गया। हैरानी की बात तो थी ही.. सपेरा, सपेरा नहीं, मेरा ही मित्र था, अविनाश। सपेरे का बाना और उस पर बीन का लहरा... साथ में सांप पकड़ने वाली टोकरियां। अभी मैं सोच ही रहा था कि इसे आगरा ले जाना ठीक होगा या शाहदरा, तब तक वही बोल पड़ा... लगता है तूने कल अखबार नहीं पढ़ा, उसमें ही एक खबर छपी है।
वन्यजीव तस्कर नोएडा में एक सांप का सौदा करते पुलिस की चपेट में आ गये। सांप कोई छोटा मोटा नहीं पूरे एक करोड़ की कीमत वाला। मुझे यकीन दिलाने का प्रयास करते हुए बोला, हां हां ब्राउन सैंड नाम के सांप से एड्स की दवा जो बनती है, तो मंहगा तो होगा ही। बढि़या धंधा है। पुलिस कौन सा रोज पकड़ लेती है। कहावत के अनुसार एक ही दिन तो होता है साध का, बाकी सौ तो मिलते हैं। पुलिस भी कौन सा असली दूध से धुली है। सब जगह तो सिंथेटिक दूध मिलता है। यूं भी रेलें चलवा-चलवा कर करोड़पति तो बनने से रहा, रहेगा वही सड़कछाप। मेरे भविष्‍य की भविष्‍यवाणी कर वो तो चला गया झाडि़यों में बीन बजाने और मैं सोच में डूब गया....
आदमी कितना जल्दी धनवान होना चाहता है। और नहीं तो, सांप ही पकड़ने को तैयार हो गया। पुलिस से बचेगा तो सांप तो डस ही सकता है। आगे पीछे खतरा ही खतरा। आगे कुआं पीछे खाई। इसी में दिख रही है कमाई, मौत का भी डर नहीं है। जिंदगी में जिसने कभी सीटी नहीं मारी, वह अब बीन का लहरा सुनाएगा और सांप पकड़ेगा। डर भी नहीं रहा है कि उसे भी कोई पकड़ लेगा।
अपनी बीन का लहरा रोककर जोर से चिल्लाया, डसने से डरना क्या ? देश के बड़े बड़े सांप रोज तो डसते ही हैं, किसी न किसी रूप में। उसकी ये बेबाक बातें मुझे विचारों में फिर से खो जाने को विवश कर रहीं थीं। मैं विचारों में खोया नहीं बल्कि डूबने लगा था...... हमारे देश में बड़े-बड़े सांप मौजूद हैं। एक करोड़ तो क्या, कई-कई करोड़ के हैं। अरबों, खरबों के भी हैं। लेकिन इनको पकड़ने में सपेरा अकेला है, अपर्याप्त है।
मैंने उसे बुलाना चाहा ... सांप पकड़ने के चक्कर में मत पड़ मेरे दोस्त, जो दाल रोटी खा रहा है, उसी में संतोष कर। कहीं सांप के बजाय कोई भयानक अजगर निकल आया तो..........? वो डसता नहीं है, गुठली समेत निगल जाता है। देखा नहीं हरियाणा में रुचिका गिरहोत्रा व उसके भाई का क्या हुआ ? कोई भी अजगर हो सकता है। यही सोचकर मैं आवाज लगा रहा था.....अविनाश.......अवि...नाश.........अ...वि....ना.....श........।
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गुरुवार, 7 जनवरी 2010

पाबंदी

सदन में
जूते चप्‍पल
चलाने की क्‍या तुकबंदी है
जवाब मिला
हथियार ले जाने पर
पाबंदी है

बुधवार, 6 जनवरी 2010

डाकिया या कुरियर

डाकिया आता था
एक थैला लाता था
मोहल्‍ला जुटता था
जिज्ञासा और आशा के बीच
हरेक आनंदित होता था
डाकिया पता पूछता
तो हर कोई
घर तक छोड़ आने को तैयार होता था
अपने आप को धन्‍य समझता था
आज पहली बात तो
डाकिया नहीं आता
कोरियर आता है
वह पता पूछता है
तो कोई नहीं बताता
पड़ोस में कौन रहता है
कोई नहीं जानता
खुश होना तो दूर की बात है

सच में ये खुशियां दूर चली गयीं हैं अब
न डाकिया है, न उसका इंतजार है
शहरीकरण जो हो गया है
कोरियर वाला आता है
पर उसे डाकिया का दर्जा
कतई नहीं दिया जा सकता

शनिवार, 2 जनवरी 2010

सभी ब्‍लागरो के लिए शुभकामना

एक बूढ़ा साल कल रात ही में खो गया
और एक नन्‍हा शिशु नववर्ष पैदा हो गया
आओ मिल स्‍वागत करें प्‍यार का परिधान दे
कामना है ये तुम्‍हें भी मान दे सम्‍मान दे