भल्ले गुझिया पापड़ी खूब उड़ाओ माल
खा खा कर हाथी बनो मोटी हो जाए खाल
फिरो मजे से बेफिक्री से होली में,
मंहगाई में कौन लगाए चौदह किला गुलाल
रविवार, 28 फ़रवरी 2010
बुधवार, 24 फ़रवरी 2010
बच्चों के लिए एक रचना
जंगल की होली
लगा महीना फागुन का होली के दिन आये
इसीलिए वन के राजा ने सभी जीव बुलवाये
भालू आया बड़े ठाठ से शेर रह गया दंग
दुनिया भर के रंग उड़ेले चढ़ा न कोई रंग
हाथी जी की मोटी लंबी सूंढ बनी पिचकारी
खरगोश ने घिघियाकर मारी तब किलकारी
उसका बदला लेने आया वानर हुआ बेहाल
लगा लगाकर थका बेचारा चौदह किलो गुलाल
मौका ताड़े खड़ी लोमड़ी रंगू गधे को आज
लगा दुलत्ती नो दो ग्यारह हो गये गर्दभराज
घायल हुई लोमड़ी उसको अस्पताल पहुंचाया
गर्दभ को जंगल के जज ने दण्डित कर समझाया
होली है त्योहार प्रेम का मौका है अनमोल
भूलो द्वेष खूब रंग खेलो गले मिलो दिल खोल
यहां राज है जंगल का सबको न्याय मिलेगा
वरना जग में हमें आदमी फिर बदनाम करेगा
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सोमवार, 8 फ़रवरी 2010
दिल्ली हिन्दी ब्लॉगर मिलन : आंख में ऊंगली मत करिये (पवन चंदन)
मैं तो नहीं आ पाया
इच्छा तो खूब रही
पर मन का कहा
पूरा नहीं होता।
रेल विभाग
कभी नहीं सोता
न सोने देता है।
मैं तो नहीं पहुंच पाया
पर मेरी हाजिरी बजाई
मेरे कैमरे ने
उसमें यह चित्र मिला ।
यह तो सही नहीं है
हिन्दी ब्लॉगिंग में
विवाद पैदा करना
आंख में ऊंगली
करने के है समान।
तो ब्लॉगिंग रूपी आंख में
ऊंगली मत करिये
पर इन्हें पहचान लीजिए
यह हैं कौन
कितने हैं इनके ठाठ
इनका नाम है ....
बाकी आप लिखिये
सीधा सरल इलाज है
आंखों को ठंडे पानी के
छीटों से धो डालिए।
अविनाश जी तो दिन में
कई बार ऐसा ही करते हैं
इसलिए ही तो
24 घंटे में से
48 घंटे हिन्दी ब्लॉगिंग
करते हैं।
इनमें भी बतलायें
उपस्थित सभी के नाम
आज यही है काम।
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