आंसू-आंसू पर नोट
·
पी
के शर्मा
मेरा
दोस्त अविनाश अक्सर हंसता हुआ आया करता था, पर न जाने क्यूं आज रोता हुआ आया।
मैंने ढांढस बंधाया... पूछा क्या हुआ ? बोला ढांढस बंधाना कांग्रेस को, मैं तो अपनी
मर्जी से रो रहा हूं। आई मीन रोने की प्रैक्टिस कर रहा हूं। मैंने सवाल दागा...
इसमें प्रैक्टिस की जरूरत ही कहां है.. आदमी तो पैदा होते ही रोना सीख जाता है।
आंसू पोंछकर समझाने लगा...एक खबर छपी है कि चीन में काम की तलाश में दर-दर भटक रहे
कलाकारों द्वारा अंतिम-संस्कारों में रोने की एक्टिंग करने का चलन जोरो पर है। इसमें
इनकम भी होती है। खबर चीन के ‘डेली मेल’ से है।
लो
जी... ये क्या खबर हुई भला...ये कलाकार तो सुबह-सुबह उठते ही दुआ करते होंगे कि, आज
भी कोई... मरे। कल एक मरा था, आज एक नहीं दो-दो मरें। अल्लाह मेहरबानी करे, तो
सौ-सौ मरें। अभी तक तो अर्थी और कफन बेचने वालों को ही, एक के साथ एक फ्री... वाले
ताने (चुटकुले) झेलने पड़ते थे। अब ये रोने वाले कलाकार भी शामिल हो गये इस
तानाकशी में। सुना है कि वहां अंतिम-यात्रा में रोने वालों की संख्या कम होना,
तौहीन की बात है। इसी लिए ऐसे कलाकारों की काफी डिमाण्ड है। मैंने प्रश्न
दागा.... तो इसका मतलब तुम्हारा, विदेश जाकर रोने का मन हो रहा है। रोने के लिए
भी पासपोर्ट वीजा.... कोई क्या कहेगा। एक कलमकार, रोने वाला कलाकार बनेगा।
बोला,
ये भी नया बिजनस है... क्या बुरा है। रोने वालों की एक-एक टीम को 30-30 हजार तक
पारिश्रमिक मिल जाता है। बस जो दमदार दहाड़े मार कर रोयेगा, उसी की कीमत ज्यादा। तू
भी तैयार हो ले, एक दो को और साथ ले लेंगे, बस... टीम तैयार। मैंने कहा, मुन्ना...
रोना है तो, अपने देश में ही बिना
पासपोर्ट रो ले। यहां बहुत सारे मुद्दे हैं रोने के लिए। नेताओं के बयान सुन-सुन
कर रो ले। मंहगाई को झेल कर रो ले। नेताओं की अकूत संपदा देखकर रो ले। भूखे को
रोटी के लिए रोता देख कर रो ले। बोला, यहां पर रोने की कीमत कौन देगा ? वहां आंसू-आंसू पर नोट बरसते हैं। जो यहां रोते हैं वे नोटो के लिए तरसते हैं। मैं
तो वहां जाकर आंसू-आंसू नोट-नोट हो जाना चाहता हूं।
लोग
तो दूसरों के दुख-दर्द में हंसते हैं और ये तो अच्छी बात है, कि तुम किसी के दुख-दर्द
में रोओगे। पर तुम रोने के पैसे लोगे, बात कुछ जमी नहीं। आंसू बिकने के लिए नहीं
होते। अगर होते हैं तो वे असली नहीं हो सकते। मित्र बोला, हूं., समझ तो गया पर
काफी देर बाद। चल जल्दी कर और तैयार हो ले.... चीन चलेंगे। मैंने फिर से उसकी जल्दबाजी
पर ब्रेक लगाए और समझाया.... मेरे यार... अगर मैं नकली आंसू रो पाता तो अपने देश
में कौन सा पैसे की कमी है ? आजादी के बाद से नेताओं को इन्हीं घडि़याली
आंसुओं ने घडि़याल बना डाला है। सच माने तो मैं ऐसा घडि़याल नहीं बनना चाहता और न
तुझे बनने दूंगा। चल एक हिन्दी का शेर सुनाता हूं.. जो मैंने देश में सुनामी आने
पर लिखा था। अगर तू समझ सका तो....
रोक सको यदि तुम, पोंछ सको यदि तुम-
आंसू भी सुनामी है, यदि आंख
समंदर है।
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