बुधवार, 30 सितंबर 2009
चांद की चिंता
मुझे सुरक्षा दो
या सुखा दो
वरना ये मेरा अंग अंग तोड़ देंगे
और सारा पानी निचोड़ लेंगे
ये अपने कदम अंतरिक्ष में बढ़ाना चाहते हैं
पृथ्वी के साथ साथ मुझे भी सड़ाना चाहते हैं
जो अब तक मुझे दूर से साला
‘अपने बच्चों का मामा‘ कहते थे
और पत्नी के चेहरे से करते थे तुलना
हे सूरज, मुझे इनसे नहीं मिलना जुलना
धरा ने इन्हें सब कुछ दिया है
इनका घर भर दिया है
लेकिन इनकी लिप्सा पूरी नहीं होती
ये प्लाट काटना चाहते हैं
धरती को तो बांट दिया है
मुझे भी बांटना चाहते हैं
अभी से सौदे बाजी होने लगी है
कई देशों में बाजी लगी है
कौन मार ले जाए बाजी पता नहीं
इससे पहले तू कुछ कर तो सही
घुमाओ खुपडि़या
अगर ऋचा में ढूंढ़ सको तो वेदों में मिल जायेगी
ऋषि ऋणी मुझसे हुए और हुए ऋतुराज
ऐसा क्या है मामला खोलो इसका राज
मंगलवार, 29 सितंबर 2009
चलो करो दिमागी काम
एक ले गयी एकता तू क्यों होत उदास
अगर तुझे भी चाहिए एकदंत को पूज
यदि मिला उत्तर सही अच्छी तेरी सूझ
सोमवार, 28 सितंबर 2009
ब्लॉगवाणी की जोत फिर से प्रज्वलित कीजिए
देश में नई नई उम्मीदों की किरण
चारों तरफ कर रहीं हैं विचरण
चांद कितना दयावान है
कर रहा है हमारे लिए जल संरक्षण
फिर आप ने ये क्या कर डाला
निकाल दिया लेखकों का दिवाला
हे ब्लॉगों के माई बाप
चंद सिरफिरों के विचारों को नजरअंदाज
क्यों नहीं कर पाये आप
जागिये जागिये और जागिये
हिन्दी की सेवा से दूर मत भागिये
ये हमारी भाषा है
वाणी बंद होने से हमें निराशा है
तो कृपया अपनी महान ब्लॉगवाणी को
फिर से जगाइये और ये सेवा का दीप फिर से जलाइये
आपकी महानता को हम प्रणाम करेंगे
रविवार, 27 सितंबर 2009
एक और पहेली
मेरा है स्थान सुरक्षित हर प्रश्न के उत्तर में
आगे मैं था जब जब चला उस्तरा नाई का
बता पहेली वरना उल्लू नाम पड़ेगा भाई का
शुक्रवार, 25 सितंबर 2009
लीजिए चौथी पहेली बताइये
इंद्रधनुष में झांक लो उसमें भी दिख जाए
इंजन के आगे रहे इसकी अपनी धाक
जिसे ढूंढ़ने आपको जाना पड़े इराक
मंगलवार, 22 सितंबर 2009
पहेली नं 3 हाजिर है
दर पर आगे आ लगे तो आदर पा जाए
चलो खुजाओ खोपड़ी करो दिमागी काम
बिन उसके थक जायेगा देखो देखो राम
शनिवार, 19 सितंबर 2009
खो गया डाकिया
मोहल्ला जुटता था जिज्ञासा और आशा के बीच हरेक आनंदित होता था
डाकिया पता पूछता तो हर कोई घर तक छोड़ आने को तैयार होता था
अपने आप को धन्य समझता था
आज पहली बात तो डाकिया नहीं आता, कोरियर वाला आता है
वह पता पूछता है तो कोई नहीं बताता पड़ोस में कौन रहता है
कोई नहीं जानता खुश होना तो दूर की बात है
सच में ये खुशियां दूर चली गयीं हैं अब
न डाकिया है, न उसका इंतजार है
शहरीकरण जो हो गया है
कोरियर वाला आता है
उसे डाकिया का दर्जा
कतई नहीं दिया जा सकता
दूसरी पहेली हल करोगे..............
काटो टुकड़े तीन फिर लेकर एक अनार
अपने को पहला मिले रहना सदा सतर्क
बनी पहेली हल करो करके तर्क वितर्क
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
एक पहेली बता सकोगे........
अंतिम के आरंभ से होती है शुरूआत
स्वर व्यंजन के हार की महिमा हुई अनंत
हंसने की शुरूआत से हो गया इसका अंत
रविवार, 13 सितंबर 2009
ब्लॉगर स्नेह महासम्मेलन : जैसा अविनाश वाचस्पति ने कहा
आज साहित्य शिल्पी के वार्षिकोत्सव पर इस ब्लॉगर स्नेह महासम्मेलन के मुख्य अतिथि डॉ. प्रेम जनमेजय जी, राजीव रंजन प्रसाद जी, मंचासीन और यहां उपस्थित सभी हिंदी प्रेमियों, ब्लॉगर्स/साहित्यकारों और टिप्पणीकारों को बधाई देता हूं और उनका अभिनंदन करता हूं।
इंटरनेट का प्रादुर्भाव विचारों के प्रकाशित किए जाने के लिए हितकारी रहा है। विचारों को प्रकट करने और हिट कराने में इसके योगदान से सभी परिचित हैं। ब्लॉग या चिट्ठे के आने के बाद संपादक जी से रचनाओं की सखेद वापसी के युग का अंत हो गया है। अब आप सर्वेसर्वा हैं यानी लेखक, संपादक, वितरक, प्रचारक और पाठक भी। जैसा कि हम सभी जानते हैं स्वत्वाधिकारी होने से जिम्मेदारी कम नहीं होती अपितु बढ़ जाती है। इस दायित्व के संबंध में माननीय मुख्य अतिथि डॉ. प्रेम जनमेजय से अधिक कौन जानता होगा, जो कि एक लंबी व्यंग्य यात्रा के साक्षी हैं।
ब्लॉग पर प्रकाशित विचारों का, रचनाओं का और आपसी विचार विनिमय का महत्व शब्दों में नहीं बतलाया जा सकता। ब्लॉग ने हमें अंतहीन विचारों का सफर प्रदान किया है। यह सफर जारी है और जारी रहना चाहिए। अजित वडनेरकर जी के शब्दों के सफर की निरंतरता और उपयोगिता के माफिक। उनसे कदाचित ही कोई अपरिचित होगा जैसे कोई उड़नतश्तरी जी को न जानता हो, ऐसे बहुत से नाम हैं ... सबका उल्लेख करना संभव नहीं है और ऐसे ही एक प्रेमी बंधु अरूण अरोड़ा जी आज यहां पर अपनी मौजूदगी से सतरंगी रंग बिखेर रहे हैं। आप अपने मन को टटोल लीजिए, ऐसे बहुत से नाम खुद ब खुद आपके जहन में गोते लगाने लग गए हैं।
आज हम साहित्य शिल्पी के सौजन्य से इनके नुक्कड़ पर अपने नुक्कड़ के तमाम लेखकों और पाठकों के साथ इस महासम्मेलनीय स्वरूप में एकत्रित हुए हैं। वैसे इनका नुक्कड़ और हमारा नुक्कड़ और आपका नुक्कड़ तथा जो इंटरनेट के माध्यम से जुड़े हुए हैं, सब मिलकर चौराहा बनता है और इस चौराहे पर मिलकर हम सब हर्षातिरेक और प्रेम से आनंदित हो रहे हैं। आज हम सब इतना कहना चाहते हैं कि यदि यह समारोह एक सप्ताह भी लगातार चले तब भी सबके पास बहुत कुछ अनकहा रह जायेगा।
इस अवसर पर स्मृति दीर्घा के भाई सुशील कुमार, आशीष खंडेलवाल का भी जिक्र करना चाहूंगा जिनकी कर्मठता, लगन और तकनीकी सहयोग ने हमारे ब्लॉगों को तकनीकी तौर पर समृद्ध किया है और यह प्रक्रिया अनवरत रूप से प्रवाहमान है। हमें बहुत सारे वरिष्ठ लेखकों का आशीर्वाद प्राप्त है, साथी लेखकों का बेशुमार प्यार जिनमें भविष्य में अपनी लेखनी के बल पर धूम मचाने वाले अजय कुमार झा, विनोद कुमार पांडेय, पुष्कर पुष्प, विनीत कुमार इत्यादि का उल्लेख कर रहा हूं। इसका आशय यह न लिया जाए कि वे इस समय धूम नहीं मचा रहे हैं और जिनके नाम नहीं ले रहा हूं वे हमें प्यार नहीं करते अपितु सबका नाम लूंगा तो अलग से एक सूची ही पढ़नी होगी तब भी सूची मुकम्मल नहीं हो पाएगी। आपके सबके स्नेह संबल से ही साहित्य शिल्पी और नुक्कड़ आज यहां मिलकर प्रेम की बरसात, सचमुच की बरसात के बीच कर रहे हैं। बारिश ने मौसम खुशनुमा बना रखा है।
इंटरनेट ने एक दुर्गम विश्व को एक सुंदर सा आधुनिक गांव बना दिया है। इंसानों की भौगोलिक दूरियों से ज्यादा वैचारिक दूरियां होती हैं। ऐसी दूरियों को पाटने का काम जितनी खूबी से इंटरनेट कर रहा है, उसकी जितनी भी तारीफ की जाए, कम है।
इस गांव की एक कुटिया में आपको पाबला जी मिलेंगे, उनके साथ वाली कुटिया में ही ज्ञानदत्त पांडेय जी अपनी छुक छुक रेलगाड़ी के साथ, चौखट में चंदन जी और मास्टरनी नामा में कुमाऊंनी चेली शेफाली पांडेय जी। जो हलद्वानी से इस ब्लॉगर्स सम्मेलन के लिए खासतौर से पधारी हैं।
ब्लॉगों पर सभी तरह के पुष्प मौजूद हैं जिसको जो लुभावना लगे वो उसके साथ जुड़ जाता है। इसमें सभी का अपना महत्व है जिसमें विधा और विषय अलग हो सकते हैं।
कंप्यूटर के सामने बैठकर कभी मैं अकेला नहीं रहा हूं। मेरे साथ एक भरा पूरा जीवंत संसार अपनी विविध कलाओं रूपी हरी, लाल, संतरी रंग की जगमगाती बत्तियों के साथ सदा मौजूद रहता है ।
बेमन से कार्य किया जा रहा हो तो समय बिताये नहीं बीतता। एक एक पल एक साल से भी लंबा महसूस होने लगता है। समय सिर्फ उसी काम में कम पड़ता है जिसमें हमारा मन रच जाता है। और फिर जिस काम में मन रम गया तो वक्त का नशा उतरने का नाम नहीं लेता। समय का पता ही नहीं लगता, कब कितना गुजर गया। ऐसे ही अहसास सुख और दुख के होते हैं।
इंटरनेट ध्यान में साधना करने वाले मेरे जैसे कीबोर्ड के खटरागी प्रत्येक साधक इस सच्चाई से रोजाना ही रूबरू होते हैं। इस साधना के सामने भूख प्यास जैसी भौतिक जरूरतें भी कुछ समय के लिए गैर-जरूरी हो जाती हैं या हम उनकी अवहेलना करने का गुनाह कर बैठते हैं। पर प्रेम के इस खेल में ऐसे गुनाहों पर माफी मिल जाया करती है।
इंटरनेट पर हिंदी के संबंध में और ब्लॉगिंग के संबंध में सभी उपस्थित जन अपने अपने विचार संक्षिप्त में रख सकते हैं। उन्हें रिकार्ड किए जाने की व्यवस्था है और उनसे लाभान्वित कराने के कार्य में साहित्य शिल्पी और नुक्कड़ टीम के सभी सदस्य एक बार फिर पूरी शिद्दत से जुट जायेंगे।
और ऐसा महसूस हो रहा है जैसे साहित्य शिल्पी के माध्यम से स्नेह विनिमय का यह प्रयास इंद्रधनुषीय रंगों को जीवंत कर रहा है।
धन्यवाद।
गुरुवार, 10 सितंबर 2009
आओ, आओ ..... बेझिझक सादर
आधुनिक युग में इसे कहते हैं विज्ञापन
और आज हम मुनादी नहीं, विज्ञापन नहीं .....................
स्नेह विस्तार कर रहे हैं
इस विस्तार में आपका प्यार भी हो
आपकी उपस्थिति भी सुनिश्चित हो
सभी ब्लॉगर मित्रों से निवेदन है
आप सभी शामिल हों
12 सितंबर दिन शनिवार को फरीदाबाद में
और इस स्नेह विस्तार को नया विस्तार दें
चटकाइये और पाइये निमंत्रण