गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
हिन्दी ब्लॉगरों हिन्दी ब्लॉगिंग के मेले में चलते हैं वहां पर सबसे सब मिलते हैं (पवन चंदन)
आइये मेरे साथ
वैसे आपमें से बहुत सारे
पहले ही आ चुके हैं
पर जो मेरी तरह लेट हैं
क्योंकि व्यस्त हैं
या जल्दी चली जाती है
लाइट जहां पर
गड़बड़ा जाता है
नेट कनेक्शन भी
खोलकर नीचे के लिंक को
घूमते रहिए मेले में
जानते रहिए सबको
मजा आ रहा है अबतो।
खोल लें अभी
.................................................................................................. जारी
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
व्यंग्य लेख हरिभूमि में प्रकाशित
गोपनीय या ओपनीय
आज मैं श्री तेंदुलकर जी के बारे में चर्चा चलाना चाहता हूं, रोकना मत... वैसे जो बात ढकी दबी रहनी चाहिए, उसे ये गेंद की तरह उछालना चाहते हैं। बुजुर्गों ने कहा है...भजन-भोजन एकांत में। भोजन का मतलब है, खाना-पीना। अब श्री तेंदुलकर जी को कौन समझाए कि हर जगह चौके और छक्के नहीं चलते। चौकों और छक्कों में गेंद उछलती दिखायी देती है। खाने-पीने की चीजों को गेंद नहीं समझना चाहिए। एक तरफ उन्होंने लिखा है कि देश में चालीस प्रतिशत लोग अपनी आवश्यक आवश्यकताओं के लिए मात्र चार सौ पचास रुपये ही जुटा पाते हैं। जुटा तो रहे हैं। न जुटा पाते तो आप और हम क्या कर लेते। तेंदुलकर साहब दूसरी तरफ सांसदों के वेतन भत्तों का गणित लगा रहे हैं। गणित और गरीबी, दोनों की चर्चा एक साथ कैसे कर सकते हो। संसद की कैंटीन का रहस्य गोपनीय होना चाहिए, ओपनीय नहीं। क्यों डेढ़ रुपये की दाल को छक्के की तरह उछालते हो। चिकन करी मात्र बीस रुपये में सीमा पार, यानि कि गले के अंदर। वैसे ये मुर्गे की गलती है। क्यों सांसदों की तरह सरकार के गठन के वक्त, अपनी कीमत नहीं लगाता।
मेरा दोस्त बोला, मुर्गे की क्या औकात जो अपनी कीमत लगाने की जुर्रत करे। मुर्गा जानता है कि इनके गुर्गों ने इनको यहां तक पहुंचाने में कितने मुर्गों की गरदन मरोड़ी होगी। कल्पना से मरा मुर्गा भी सिहर उठेगा। पर ये जो दाल उछाल कार्यक्रम श्री तेंदुलकर जी ने चलाया है, सच में इसको नहीं चलाया जाना चाहिए। आप अपना चूल्हा-चौका देखो, दूसरों की रसोई का धुंआ क्यों देखते हो। इस जमाने के लोग तो पड़ोस में जलती हुई किसी बहू से उठते हुए धुंए को भी नहीं देखते। आपको क्या मालूम संसद की कैंटीन तक जाने में कितना खर्चा हो जाता है। ये सस्ता खाना यूं ही नहीं मिल जाता । जनता को नारे खिलाने-पिलाने पड़ते हैं। और तो और एक-एक घूंट पर पूरे जहान में चर्चा हो जाता है। बड़ी मेहनत मशक्कत के बाद ही सब कुछ संभव हो पाता है।
हां पर एक बात समझ में नहीं आयी, ये तेंदुलकर जी को इन लफड़ों में पड़ने की क्या जरूरत थी। वो तो इस तरह के मामलों में पड़ते ही नहीं हैं। वो तो क्रिकेट का मजा ले रहे हैं, उन्होंने कभी इस तरह की चर्चा नहीं की।
मैंने समझाया, तुम इस दुनिया के अकेले अविनाश नहीं हो, और भी अविनाश हैं इस दुनिया में। इसी तरह तेंदुलकर सिर्फ सचिन ही नहीं है, और भी हैं.. समझे। ये हैं श्री सुरेश तेंदुलकर जो आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थे। ये इनका आकलन है। इनका भी दूसरों की थाली देख-देखकर हाजमा ख़राब हो रहा है। शुक्र है ये साहब इनकी कैंटीन के खाने का, रेट देख ही पाये हैं। कहीं इन्होंने इनका गोपनीय खाने का रेट और पेट देख लिया होता तो... क्या हाल होता।
आज मैं श्री तेंदुलकर जी के बारे में चर्चा चलाना चाहता हूं, रोकना मत... वैसे जो बात ढकी दबी रहनी चाहिए, उसे ये गेंद की तरह उछालना चाहते हैं। बुजुर्गों ने कहा है...भजन-भोजन एकांत में। भोजन का मतलब है, खाना-पीना। अब श्री तेंदुलकर जी को कौन समझाए कि हर जगह चौके और छक्के नहीं चलते। चौकों और छक्कों में गेंद उछलती दिखायी देती है। खाने-पीने की चीजों को गेंद नहीं समझना चाहिए। एक तरफ उन्होंने लिखा है कि देश में चालीस प्रतिशत लोग अपनी आवश्यक आवश्यकताओं के लिए मात्र चार सौ पचास रुपये ही जुटा पाते हैं। जुटा तो रहे हैं। न जुटा पाते तो आप और हम क्या कर लेते। तेंदुलकर साहब दूसरी तरफ सांसदों के वेतन भत्तों का गणित लगा रहे हैं। गणित और गरीबी, दोनों की चर्चा एक साथ कैसे कर सकते हो। संसद की कैंटीन का रहस्य गोपनीय होना चाहिए, ओपनीय नहीं। क्यों डेढ़ रुपये की दाल को छक्के की तरह उछालते हो। चिकन करी मात्र बीस रुपये में सीमा पार, यानि कि गले के अंदर। वैसे ये मुर्गे की गलती है। क्यों सांसदों की तरह सरकार के गठन के वक्त, अपनी कीमत नहीं लगाता।
मेरा दोस्त बोला, मुर्गे की क्या औकात जो अपनी कीमत लगाने की जुर्रत करे। मुर्गा जानता है कि इनके गुर्गों ने इनको यहां तक पहुंचाने में कितने मुर्गों की गरदन मरोड़ी होगी। कल्पना से मरा मुर्गा भी सिहर उठेगा। पर ये जो दाल उछाल कार्यक्रम श्री तेंदुलकर जी ने चलाया है, सच में इसको नहीं चलाया जाना चाहिए। आप अपना चूल्हा-चौका देखो, दूसरों की रसोई का धुंआ क्यों देखते हो। इस जमाने के लोग तो पड़ोस में जलती हुई किसी बहू से उठते हुए धुंए को भी नहीं देखते। आपको क्या मालूम संसद की कैंटीन तक जाने में कितना खर्चा हो जाता है। ये सस्ता खाना यूं ही नहीं मिल जाता । जनता को नारे खिलाने-पिलाने पड़ते हैं। और तो और एक-एक घूंट पर पूरे जहान में चर्चा हो जाता है। बड़ी मेहनत मशक्कत के बाद ही सब कुछ संभव हो पाता है।
हां पर एक बात समझ में नहीं आयी, ये तेंदुलकर जी को इन लफड़ों में पड़ने की क्या जरूरत थी। वो तो इस तरह के मामलों में पड़ते ही नहीं हैं। वो तो क्रिकेट का मजा ले रहे हैं, उन्होंने कभी इस तरह की चर्चा नहीं की।
मैंने समझाया, तुम इस दुनिया के अकेले अविनाश नहीं हो, और भी अविनाश हैं इस दुनिया में। इसी तरह तेंदुलकर सिर्फ सचिन ही नहीं है, और भी हैं.. समझे। ये हैं श्री सुरेश तेंदुलकर जो आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थे। ये इनका आकलन है। इनका भी दूसरों की थाली देख-देखकर हाजमा ख़राब हो रहा है। शुक्र है ये साहब इनकी कैंटीन के खाने का, रेट देख ही पाये हैं। कहीं इन्होंने इनका गोपनीय खाने का रेट और पेट देख लिया होता तो... क्या हाल होता।
मंगलवार, 13 अप्रैल 2010
हिन्दी ब्लॉगर टंकी पुराण प्रतियोगिता का आयोजन
इस जानकारी को अधिक से अधिक ब्लॉगरों तक पहुंचाने के लिए अपने ब्लॉग पर पोस्ट लगा सकते हैं और चर्चाओं में इसका उल्लेख किया जा सकता है
आप स्वयं को एक सच्चा हिन्दी ब्लॉगर स्वीकार करते हैं तो इस प्रतियोगिता में भाग लेकर अपनी भावना को साबित करने का सुनहरा अवसर है।
इस प्रतियोगिता में ब्लॉगर और नॉन ब्लॉगर सभी भाग ले सकते हैं परन्तु इससे भाग कोई भी नहीं सकता। चाहे वो इस प्रतियोगिता के आयोजन का समर्थन करते हों या नहीं करते हों। जिस प्रकार समर्थन करने के लिए इस प्रतियोगिता में भाग लेना अनिवार्य है उसी प्रकार विरोध करने के लिए भी भाग लेना अनिवार्य है। इसमें भाग लेने से ही आपकी सहमति और विरोध दर्ज किया जाएगा । पोस्ट लगाते समय क्रमवार पहले इन प्रश्नों के उत्तर दें और बाद में सार-संक्षेप और निष्कर्ष प्रस्तुत करें :-
1. टंकी का प्रादुर्भाव किसने किया
2. टंकी से प्रभावित पहला ब्लॉगर
3. टंकी का मौलिक आइडिया किसका था
4. टंकी पर चढ़ने वाले ब्लॉगरों की सूची
5. टंकी से उतारने वाले ब्लॉगरों की सूची
6. टंकी पर चढ़े ऐसे कोई ब्लॉगर जो चढ़ने के बाद उतरे ही न हों
7. टंकी पर सामूहिक रूप में ब्लॉगर कभी चढ़े अथवा नहीं
8. टंकी के वे चित्र जो इस दौरान चर्चा में आए
9. टंकी ने जिन ब्लॉगर और ब्लॉगों को लोकप्रियता प्रदान की
10. टंकी की हिन्दी ब्लॉगजगत में उपादेयता पर 500 शब्दों में एक सारगर्भित विवेचन प्रस्तुत कीजिए।
इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए टिप्पणी रूपी सीढ़ी मात्र तीन दिन के बाद हटा ली जाएगी क्योंकि इस पर टिप्पणी नहीं, अपने अपने ब्लॉग पर इस प्रतियोगिता में भाग लेने का संदर्भ देते हुए एक पूरी हैवी ड्यूटी पोस्ट लगाना अनिवार्य है। जिनकी सूचना avinashvachaspati@gmail.com पर भेज दी जाए। जिनका लिंक http://nukkadh.com/ पर दिया जायेगा और जब न्यूनतम एक सौ एक पोस्टें अधिकतम की कोई सीमा नहीं है, इस संबंध में प्रकाशित हो जाएंगी तब एक वोट बक्सा खोला जाएगा उस वोटिंग के अनुसार जिसकी भी प्रविष्टि/पोस्ट सर्वोत्तम पाई जाएगी। उस ब्लॉगर के ऑनलाईन बैंक खाते में इनाम की राशि जमा कराई जाएगी। इस राशि के प्रायोजक की तलाश भी साथ-साथ चलती रहेगी। यदि सबकी सहमति रही तो इस संबंध में एक टंकी प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा जिसे कि भाग लेने वाले सभी ब्लॉगर अपने-अपने ब्लॉग पर लगा सकेंगे।
अंतिम तिथि इसमें खोजबीन के श्रम को देखते हुए पूरे एक महीने की घोषित की जा रही है जिसे ब्लॉगरों की मांग पर बढ़ाया और घटाया भी जा सकता है। यदि कोई विवाद होते हैं तो उन सभी का निपटारा दिल्ली में हिन्दी ब्लॉगरों के मिलन समारोह में ही किया जाएगा।
इस प्रतियोगिता के संबंध में कोई सुझाव स्वीकार्य नहीं होंगे और इसमें लिए गए निर्णयों में किसी का हस्तक्षेप लागू नहीं होगा। सभी नियम परिवर्तनशील हैं। इस प्रतियोगिता को चालू रखने, रद्द करने संबंधी सभी अधिकार सुरक्षित हैं और इन पर कोई दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा।
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