गुरुवार, 15 मई 2008

लोग कहते हैं लोग कहते हैं

तपती हुई प्रकृति गर्मी से झुलसकर,
सावन के आते ही वसुधा पे उतरकर
बादल की मशक लेकर तन मन को धो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है।

कुरूप हो न जाए जो हो गया है मैला
मौसम की धूल का न रहे दाग पहला
वसुंधरा अपने दामन को धो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है।

चांद और बदली में हो गयी खटपट
रूठी हुई बदरिया सूरज से करके घूंघट
सिसकियां भर भर के रो रही है
लोग कहते हैं बारिश हो रही है।

1 टिप्पणी:

  1. चांद और बदली में हो गयी खटपट
    रूठी हुई बदरिया सूरज से करके घूंघट
    सिसकियां भर भर के रो रही है
    लोग कहते हैं बारिश हो रही है।

    वाह..एक अद्भुत आयाम दिया है आपने बारिश को...बधाई!

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टिप्‍पणी की खट खट
सच्‍चाई की है आहट
डर कर मत दूर हट