शीतलहर के कोप का चला रात भर दौर
धुंध ओढ़कर आ गयी भयाक्रांत सी भौर
सूरज कोहरे में छिपा हुआ चांद सा रूप
शरद ऋतु निष्ठुर हुई भागी डरकर धूप
सूरज भी अफसर बना, है मौसम का फेर
जाने की जल्दी करे और आने में देर
दिन का रुतबा कम हुआ, पसर गयी है रात
काटे से कटती नहीं, वक्त-वक्त की बात
दिन का रुतबा ख़त्म हुआ, पसर गयी है रात
जवाब देंहटाएंकाटे से कटती नहीं, वक़्त वक़्त की बात
वक़्त वक़्त की बात, की दिन थे वो भी होते,
सुबह तरसते पानी को, रात बिजली को रोते
रात बिजली को रोते, कि गर्मी करे पसीना,
लगवा लो जेनेरटर बोले जालिम हसीना
अरे ! किधर से लायें पैसा, सुन ओ ज़ालिम दिलबर
तुम झलो हमको और हम झलें पंखा तुमपर
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जवाब देंहटाएंपवन जी आपके दोहे बढ़िया लगे किन्तु तनिक ध्यान दें तीसरे दोहे की दूसरी पंक्ति में मात्राएँ १३,११ की बजाय १३,१२ हो गयीं हैं. आशा है आप उन्हें सुधार लेंगे...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद