अत्र कुशलम् तत्रास्तु
·
पी
के शर्मा
वो जमाने चले गये जब लोग ख़त लिखा करते थे।
डाकिया भी समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान पाता था। लेकिन आजकल डाकिया, रुपये की
कीमत भर रह गया है। कारण सब जानते हैं। अब एस एम एस आते जाते हैं। चार दिन का काम
चार मिनट में होने लगा है। अत्र कुशलम् तत्रास्तु के दिन लद गये हैं। इस जमाने
में तो शमशाद बेगम भी कुछ यूं गातीं-- एस एम एस लिख रही हूं, दिल-ए-बेकरार का। मोबाइल
में रंग भर
के
तेरे इंतजार का। ख़ैर... मैं आज अचानक
अपने मित्र अविनाश से मिलने जा पहुंचा। बोला आ बैठ... तुझसे ही मिलने की तलब लगी
थी, ठहर जरा मैं एक ख़त लिख लूं। इस खत में एक प्यारा-प्यारा पैगाम भेज रहा हूं।
मैंने उसे हैरानी से निहारते हुए पूछा उम्र के अगस्त-सितंबर में क्या प्यारा-प्यारा
लिखने लगे हो? बोला गलत मत सोच..मैं इस पत्र-लेखन कला को जिंदा
रखना चाहता हूं और सिंगापुर के व्यवसायी लिम सू सेंग को भारत आने का न्यौता भेज
रहा हूं। एक तीर से दो शिकार कर रहा हूं।
कौन है ये... लिम सू सेंग ? बोला, है एक बेचारा सरकार का मारा सिंगापुरी व्यवसायी।
इस पर इल्जाम है कि इसने अपने कुत्ते को सताया और भूखा रखा। उसकी सेहत का ख्याल
नहीं किया। अदालत ने इसे करीब 5 लाख का जुर्माना ठोक दिया है। है न हद दर्जे की
नाइंसाफी। अरे उसका कुत्ता वो भूखा रखे, प्यासा रखे, इससे तुम्हें क्या। सच
पूछो तो ऐसी-वैसी खबरें पढ़कर मन करेला-करेला होने लगता है। इससे पहले कि बात नीम-नीम
होने तक पहुंचे, मैंने उसे न्यौता भेज दिया है.... आजा प्यारे पास हमारे, काहे
घबराए। यहां किसी बात का डर नहीं है। ख़बरें बतातीं हैं, यहां तो औलाद ही वाल्देन
को सताती है और सजा नहीं पाती है। कत्ल कर दो, तो भी कोई बात नहीं। गवाह तोड़ दो,
काम ख़तम। किसी को सताना यहां अपराध की श्रेणी में, आ ही नहीं पाता। कुत्तों की
छोडि़ये, देश की जनता कितनी सतायी जाती है, अगर इसका हिसाब रखा जाने लगे तो...कारागार
की शार्टेज होने लगेगी। गिरफ्तारी.... करेगा कौन? सताने पर
सजा होने लगी तो, देश में शासन चलाने का संकट भी पैदा हो जायेगा। मैं उसकी सारी
बातें ध्यान से सुन रहा था। वो भी जो लिख चुका था उसकी कमैंट्री जारी थी। बोला---
मैंने लिखा है-- सू सेंग...... छोड़ दो सिंगापुर। क्या रखा है
सिंगापुर में? हमारे यहां तो वैसे ही अतिथि देवो भव: की तूती बोलती है। यहां रोज
न जाने कितने भूखे-प्यासे सो जाते हैं, कोई हिसाब नहीं। कोई सजा नहीं। सजा किसको
दें। पहले तो केस ही दर्ज न हो। कितने सताये जाते हैं, कौन गिने? गिनती ख़तम ही नहीं होगी। गिनती तो वैसे भी किसी
ऐसे गणितज्ञ ने बनाई हैं जिसे समाप्त करना ही नहीं आता था, नतीजन गिनती अनंत तक
है। इसीलिए तो आजतक गिनती समाप्त नहीं हुई और कभी होगी भी नहीं। शुरू होने के लिए
शून्य की आवश्यकता थी सो भारत ने उसका आविष्कार कर ही लिया है। ज्यादा गणितीय चीर-फाड़
के लिए दशमलव को भी खोज डाला। भले ही आज पढ़ाई-चोर विद्यार्थी उन खोजी प्रतिभाओं
के प्रति अमर्यादित भाषा का प्रयोग करें, जैसी नेता लोग अक्सर परस्पर करते रहते हैं।
ये सच है कि कोई भी गणितज्ञ आज तक गिनतियों का अंत नहीं खोज पाया। मैंने कहा इसमें
गिनती क्या करेगी ?
उदास होकर बोला हां.... यहां सताने वाले भी कम
नहीं, सताए जाने वाले भी कम नहीं और इस बात का किसी को गम नहीं। पर सेंग साहब को
मैंने लिख दिया है कि यहां आ कर देखो तो सही। सताने की बात छोड़ो... आपको पीडि़त
कुत्ते के मरने तक कोई जुर्माना नहीं करेगा। आपका कुत्ता... आपके सताने से नहीं,
आपकी ही मौत मरेगा और कहा ये जायेगा कि अपनी ही मौत मरा है।
वाह । मेरे को भी भिजवा देना एक कापी बिना टिकट लगे लिफाफे में बैरंग । अविनाश जी को सलाम ।
जवाब देंहटाएंBadhiya...hmare thode likhe ko adhik samajhna!!!
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