एक थैला लाता था
मोहल्ला जुटता था
जिज्ञासा और आशा
के बीच हरेक आनंदित होता था
डाकिया पता पूछता तो हर कोई
घर तक छोड़ आने को तैयार होता था
अपने आप को धन्य समझता था
आज
पहली बात तो डाकिया नहीं आता
कोरियर आता है
वह पता पूछता है
तो कोई नहीं बताता
पड़ोस में कौन रहता है
कोई नहीं जानता
खुश होना तो दूर की बात है
सच में ये खुशियां दूर चली गयीं हैं
अब न डाकिया है, न उसका इंतजार है
शहरीकरण जो हो गया है
कोरियर वाला आता है
उसे डाकिया का दर्जा कतई नहीं दिया जा सकता
माना जमाना बीत गया है
जवाब देंहटाएंकोरियर आगे बढ़ गया है
डाकिया पीछे छूट गया है
कोई खुशियां लूट गया है
पर अब मिलती है खुशी
एम एम एस में ही जी
मोबाइल की मिस काल में
ब्लॉग पोस्ट में टिप्पणी में।
सही है .. स्थायित्व के न होने से ही कूरियरवाले को डाकिया नहीं माना जा सकता .. अब फोन के साथ ही साथ जीमेल , याहू आदि डाकिया बन गए हैं।
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