कार्यक्रम के प्रारंभ में खुशदीप सहगल के पिताजी की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया और खुशदीप सहगल, चंडीदत्त शुक्ल, शिवम् मिश्रा और विवेक रस्तोगी ने फोन पर आयोजन के लिए शुभकामनाएं दीं।
भाई समीरलाल जी और उनके ब्लॉग उड़नतश्तरी का भारत की राजधानी के दिल कनाट प्लेस में हार्दिक स्वागत है। पुष्पों से किया जा चुका है और यह शाब्दिक है। शाब्दिक की अपनी सत्ता है। आपका सबका भी हार्दिक अभिनंदन करता हूं। प्रत्येक इकाई अपने आप में महत्वपूर्ण और शक्तिशाली है। आज आप सबको मध्य पाकर पूरा हिन्दी ब्लॉग जगत प्रफुल्लित है, खुशियों से झूम रहे हैं सब। हमारा आपका सबका मिलना बतला रहा है कि आज मानव तकनीकी तौर पर कितना समुन्नत हो चुका है। पहले हमख्यालों की जानकारी भी नहीं मिलती थी और आज हमविचार विश्व की चहार दीवारियों को फर्लांग कर एक छत के नीचे मिल बैठ रहे हैं। पहले यह छत आसमान हुआ करती थी, इसलिए दूरियां थीं। आज की छत इंटरनेट है, दूरियां नहीं हैं। आपसी संवाद बहुत तेजी से बढ़ा है। यह सब शुभसूचक है।
इस आयोजन में सक्रिय भूमिका भाई अनिल जोशी की रही है। वे काफी समय से कह रहे थे कि दिल्ली में एक हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन किया जाना चाहिए। संयोग ऐसा बना कि कनाडा से भाई समीर लाल जी भारत पधारे और हम दोनों ने मिलकर उन्हें लपक लिया। नतीजा आपके सामने है।
संगठन में शक्ति है। मिलने से ही संगठन बनते हैं और मिलने से ही आपस में ठनती भी है। परंतु हिन्दी ब्लॉगरों का मिलना बनना होता है, ठनना नहीं। सारी ठनठनाहट खुशियों की आहट में बदल दिल लुभाती है। संगठन की शक्ति को सब स्वीकार करते हैं परंतु संगठन बनाने से परहेज करते हैं, इस पर आप अपने विचार अपने अपने ब्लॉगों पर जल्दी ही जाहिर करें ताकि उन्हें समेकित कर हिन्दी ब्लॉगिंग के विकास की एक महत्वपूर्ण सीढ़ी चढ़ ली जाए। सीढ़ी चढ़ना ही विकास की ओर बढ़ना है।
सार्थक ब्लॉगिंग आखिर है क्या, यही सवाल सबके सामने है। जहां तक मेरा विचार है कि ध्वस्त हो रहे जीवन मूल्यों, सामाजिकता, जनसेवा की भावना को पूरा रचनात्मक सकारात्मकता के साथ आपस में साझा करना, जिसके मानवता की बेहतरी की ओर तेज कदमों से आगे बढ़ा जा सके। सबके विचार अलग अलग हो सकते हैं परन्तु मानवता की बेहतरी पर सब एकमत ही होंगे। इस नए माध्यम की शक्ति प्रत्येक में अंर्तनिहित है।
आप सबका यहां पर इकट्ठा होना बतलाता है कि इस नए माध्यम में आपकी श्रद्धा है, आप इससे प्यार करते हैं और पूरा विश्वास करते हैं। आप कितने ही लोगों को इस विधा से जुड़ने के लिए आमंत्रित कर चुके हैं।
क्या ब्लॉगिंग को सिर्फ समय बरबाद करने की तकनीक मात्र समझना चाहिए या इसके चहुंमुखी विकास के लिए अपनी संपूर्ण ईमानदारी के साथ प्रयास करने चाहिएं। संगठन की शक्ति को हिन्दी ब्लॉगिंग की शक्ति बनाना चाहिए। मेरा अनुभव है कि जब भी, जहां भी ब्लॉगर मिलन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, कोई न कोई छद्मनामी या बेनामी अपने कुविचारों के साथ अपनी मौजूदगी दिखलाता है। इससे तो ऐसा लगता है कि कुछ डरपोक, कायर लोग हिन्दी ब्लॉगिंग में भी हैं। ब्लॉगिंग में इंसान ही हैं देवता तो हैं नहीं, इंसान हैं तो कमजोरियां भी होंगी और डरना भी एक कमजोरी से अधिक कुछ नहीं है। तकनीक को सार्थकता देना हमारी जिम्मेदारी है और इस पर भाई बालेन्दु दाधीच जी बतला चुके हैं। मुझे और अनेक हिन्दी प्रेमियों को ब्लॉगिंग में लाने का श्रेय भाई बालेन्दु को है, वर्ष 2007 में कादम्बिनी में प्रकाशित उनका आलेख ब्लॉग हो तो बात बने, से मेरी बात बन गई है। आपस में मिलने जुलने से जिम्मेदारी का विकास होता है, समय कम है फिर भी इसका बेहतर उपयोग करने के लिए कोशिश की गई है। इस सम्मेलन के संपन्न होने के बाद आप सबके ब्लॉगों पर आने वाली पोस्टें इस सम्मेलन और ब्लॉगिंग की सार्थकता को ध्वनित करेंगी, इसी विश्वास के साथ, अपनी हर सांस के साथ मैं सबके एकजुट होने का आवाह्न करता हूं।
धन्यवाद
बहुत बढ़िया विचार अभिव्यक्ति .. फोटो जोरदार लगी ... आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया और अति शीघ्र प्रस्तुति के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंआज से आपका अनुसरण कर रहा हूँ ! शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा वाचस्पति जी ने की मिलने से ही संगठन बनाते हैं. उनका प्रयास सफल रहा इसके लिए उन्हें बधाई.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही बात..... फोटो और पोस्ट दोनों .... खूब
जवाब देंहटाएंब्लागिंग स्वतंत्र विधा है इसे किसी बंधन में बांधना ठीक नही हैं :)
जवाब देंहटाएंबैठक सार्थक, आयोजकोँ के के दृष्टी से रही. हिन्दी ब्लॉगरोँ पर बालेन्दु जी की कवीता वास्तव मे हर एक ब्लॉगर की परिचय देने मे समर्थ रही।
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगींग के विषय मेँ किसी भी एकिकृत और सर्वमान्य समूह अथवा प्लेटफार्म के लिये सोचना निरर्थक है, हलांकि यह स्थिति ठीक ब्लॉग मे समाजवाद स्थापित करने जैसा है, जिसके लिये जो भी किया जाये, जितना भी किया जाये , पूरा नही हो सकता। एक एक डायरेक्टीव प्रिंसीपल अवश्य हो सकता है। ऐसे किसी भी आयोजन को एक अनौपचारिक मिलन के सिवा और कोई अपेक्षा रखना, मुर्खता है।
अभी सक्रिय हिन्दी ब्लॉगस की संख्या अपेक्षाकृत कम है, जैसे जैसे लोग आते जायेंगे, हिरोईज्म समाप्त होता जायेगा। आप व्यगतिगत तौर पर कितने ईमानदार हैँ और आपके व्यक्तिगत स्वार्थ क्या हैँ, मायने यहीँ रखता हैँ।
हमेँ ऐसे हर आयोजन को ब्लॉग संस्कृति की स्थापना की ओर एक कदम मानना चाहिए, भले हीँ यह विकृति क्योँ न हो!!
आशा है, आप दिवार की इबारत को पढ लेंगे !
अविनाश जी को उन्हीं के मुखारबिन्दु से सुने :
जवाब देंहटाएंhttp://phool-kante.blogspot.com/2010/11/blog-post_5127.html
अच्छे विचार। अब ब्लागिंग की दुनिया आभासी नहीं रही, अब यह वास्तविक धरातल पर खडी है तो धीरे-धीरे लोग एक दूसरे को समझेंगे और ब्लागिंग के उद्देश्य पर भी आएंगे।
जवाब देंहटाएंlogo ko rasta dikha kar khud hi rasta bhool gaye.
जवाब देंहटाएंबड़ी सारगर्भित रिपोर्ट है। कार्यक्रम तो सार्थक तथा यादगार रहा ही, उसके बाद ब्लॉगर मित्रों ने जिस तेजी से सूचनाओं और चित्रों का प्रसारण किया है वह भी प्रभावशाली है। हिंदी ब्लॉगिंग को इसी तरह की ऊर्जा और त्वरा की जरूरत है। बहुत धन्यवाद।
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