फागुन
न जाने क्या कब हुआ, बचपन हो गया लुप्त
यौवन छलके देह से, फागुन रखियो गुप्त
कुछ छींटे महसूस कर भीगा सारी रात
मौसम हुआ शरारती ख़बर बांट दी मुफ्त
भंग का रंग
लगती पीकर भांग को, होली बड़ी विचित्र
फिर तो भाभी सा लगै, हमको अपना मित्र
अगर नहीं हो पास कभी वो होली में
रंग डालो जी प्यार से उठा उसी का चित्र
होली में भी दर्द है
शादी अपनी हो गयी, ससुर मिले कंजूस
किसको हम साली कहें, होता है महसूस
नहीं दीखती बाला कोई होली में-
दुनिया खुश है आज हमीं बस लगते हैं मनहूस
are bhai bahar niklo holi ka rang sacha hoga to bala bhi mil jayegi mayoos kyon ho holi mubarak
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है आपने ..
जवाब देंहटाएंहोली मुबारक . हो..
बहुत खूब लिखा है आपने ..
जवाब देंहटाएंहोली मुबारक . हो..
बहुत सुंदर ... होली की ढेरो शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबढ़िया!!
जवाब देंहटाएंआपको होली की मुबारकबाद एवं बहुत शुभकामनाऐं.
सादर
समीर लाल
क्या बात करते हैं चंदन जी
जवाब देंहटाएंहमने देखा है कि आप
प्राण शर्मा को रंगे डाल
रहे हैं, आप 100 किलो के हैं
100 ग्राम के प्राण रहे हैं निकाल।
होली मुबारक
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