बड़े बड़ों का हाजमा
मेरा एक मित्र हैरान परेशान सा अखबार लहराते हुए कमरे में दाखिल हुआ और मेज पर पटकते हुए बोला....... लो..... कर लो, गल। रिश्वत और वो भी दो करोड़ की। हद हो गयी मुंह फाड़ने की। ऐसा भी नहीं कि गलती से ज्यादा फट गया हो। एक तुम और हम हैं, जो इमानदारी से चूल्हे में फूंक मार-मार कर परेशान हैं और चूल्हा है कि सुलगता ही नहीं। लोगों को इतना ईं..धन मिल जाता है कि भाड़ भभक रहे हैं। लगता है हम तुम पीछे हैं और जमाना ज्यादा ही आगे निकल गया, नहीं भागे जा रहा है।
मैंने उसके उबाल को कॉफी पिलाकर शांत किया और समझाया......
मेरे यार, ये हाई स्टेटस का मसला है। उपायुक्त हैं, वो भी राजधानी के नगर निगम के। पद की गरिमा नहीं रखनी क्या.....। पद को देखते हुए रकम ज्यादा नहीं है। अब तुम चाहो उपायुक्त दो कोड़ी का होकर रह जाए...। पुराने जमाने में कोड़ी 20 को कहते थे। उपायुक्त 20 रू के लिए हाथ फैलाएगा...। ऐसा कैसे हो सकता है?
मेरे प्रश्नीय वक्तव्य सुनकर उसे फिर से उबाल आने लगा था। उसके इस नये उबाल में मुझे हर्षद मेहता का नाम तैरता नजर आ रहा था। वही पुराना किस्सा याद कर पूछने लगा....हैसियत की ही बात थी तो उस शेयर दलाल पर एक करोड़ देने का आरोप क्यों उछला था, एक अरब का क्यों नहीं? उपायुक्त की हैसियत तो उस मामले के मुकाबले, पासंग भी नहीं है।
मैंने अपने दिमाग की फिर घुण्डी घुमाई और मित्र को एक बात और समझाई....जमाना बदल रहा है, आदमी की तरह पैसे की कीमत भी गिर रही है। लगता है.... देखते सुनते नहीं हो..... आदमी और शेयर मार्किट का सेंसैक्स कब गिर जाए... कुछ पता है? मंदी का दौर है। दूसरों के लाखों करोड़ों देखकर तू क्यों थर्मामीटर से बाहर जा रहा है? मैं तो कहता हूं, आइसक्रीम की तरह ठंडा रहना और जमना सीख ले। नहीं मानता तो...तेरे लिए कटोरा मंगवा देता हूं..... ले जा... और भीख... ले।
अरे खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदले तो चलता है, पर तरबूज को देखकर खरबूजा कैसे गुजारा करेगा? तू अपनी औकात देख... अगले की है...तो है। बड़े लोगों का हाजमा है...। मेरे भाई.... पराये तंदूर की भभक देखकर तू तो मत सुलग। जा.... और अपने काम से काम रख। आज ड्यूटी नहीं जाना क्या?
और अविनाश वाचस्पति को मुंह लटकाये जाते हुए देखना मुझे दर्दनाक लग रहा था।
वाह। कहते हैं कि-
जवाब देंहटाएंभ्रषटाचार एक घाव था छोटा भढ़कर अब नासूर हुआ।
हालत यहाँ तक आ पहुँची कि जान बचाना मुश्किल है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
कौड़ी
जवाब देंहटाएंदो कौड़ी
बेकौड़ी
सौ कौड़ी
या
करोड़ी भ्रष्टाचार
जिसका
नहीं उपचार।
भाई मजा आ गया ...अच्छा व्यंग्य था
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
bahut hi badhiya vyangy. dhanyawad.
जवाब देंहटाएंवाह अच्छी रचना है भई इस के लिये बधाई स्वीकारिये
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई। पढ कर हमें भी मजा आ गया।
जवाब देंहटाएं-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन