गुरुवार, 18 अक्टूबर 2007

कानून

जमकर कर लो चुगलियाँ खूब करो अपमान
पहले थे अब कट गए दीवारों के कान

खून खराबा हो गया डरने की क्या बात
लंबे थे छोटे हुए कानूनों के हाथ

चाहे जो अपराध हो गायब करो सबूत
खून डकैती राहजनी सभी माफ़ करतूत

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन सामयिक दोहे...और लाईये इस श्रेणी में...कम से कम ११ दोहे की माला तो होना ही चाहिये जपने के लिये. :)

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  2. तीखे एवं करारे व्यंग्यो में आपका कोई सानी नहीं

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  3. लेकिन सिर्फ एक दोहे से कुछ नहीं होगा...
    अभी तो दाढ भी गीली नहीं हुई गुरुवर...

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टिप्‍पणी की खट खट
सच्‍चाई की है आहट
डर कर मत दूर हट