गुरुवार, 18 अक्टूबर 2007

पंडित बोला ग्रह है कोई भारी

कल भारत जीता
आज मार्केट हारी
पंडित बोला ग्रह है कोई भारी

जल्दी चुकाओ उधारी
जेब पर चलाओ आरी

कल पटाखे बजाए थे खूब
आज पटखनी खाए मंसूब
जीत हार का मेल है
एक खेल है
दूसरा पैसे की रेल है
यहां पर सारी इकानामी फेल है

खिलाड़ी कमा रहे हैं
वो पैसे की रेल चला रहे हैं
जीते चाहे हारें
खूब कमा रहे हैं

सब मार्केट की माया है
वहां पर विज्ञापनों ने
चमत्कार दिखाया है
यहां पर शेयरों ने
भरपूर रूलाया है

हंसी पर रोना भारी है
चलो चुकानी उधारी है
पंडित बोला
ग्रह भारी है।

3 टिप्‍पणियां:

टिप्‍पणी की खट खट
सच्‍चाई की है आहट
डर कर मत दूर हट