कल भारत जीता
आज मार्केट हारी
पंडित बोला ग्रह है कोई भारी
जल्दी चुकाओ उधारी
जेब पर चलाओ आरी
कल पटाखे बजाए थे खूब
आज पटखनी खाए मंसूब
जीत हार का मेल है
एक खेल है
दूसरा पैसे की रेल है
यहां पर सारी इकानामी फेल है
खिलाड़ी कमा रहे हैं
वो पैसे की रेल चला रहे हैं
जीते चाहे हारें
खूब कमा रहे हैं
सब मार्केट की माया है
वहां पर विज्ञापनों ने
चमत्कार दिखाया है
यहां पर शेयरों ने
भरपूर रूलाया है
हंसी पर रोना भारी है
चलो चुकानी उधारी है
पंडित बोला
ग्रह भारी है।
अच्छी कविता.धन्यवाद
जवाब देंहटाएंhttp://kakesh.com
बेहतरीन रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन कटाक्ष....
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